पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३२९

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नायक अपने मित्र से कहता है कि मैं, देरी तक, अंगना के उस संग का स्मरण करता रहता हूँ, जिसमें गरदन कुछ झुकती रहती है, प्रेम-पूर्ण नेत्र-कमल कुछ कुछ मिंच जाते हैं और सब अंग, अत्यंत श्वास के कारण, आलस्ययुक्त हो जाते हैं।

यहाँ जो स्मृति है, वह 'भाव' नही कही जा सकती; क्योंकि वह स्मृतिवाची शब्द ('स्मरामि' अथवा 'सुमिरौ') के द्वारा वर्णन की गई है, अत: व्यंग्य नहीं हो सकती। न 'स्मरणालंकार' ही है; क्योंकि यह स्मरण किसी प्रकार की समानता के कारण उत्पन्न नही हुआ है। और, यह सिद्धांत है कि-समानता के कारण जो स्मरण होता है, उसे 'स्मरणालंकार' और स्मरण यदि व्यंग्य हो, तो 'स्मृति भाव' माना जाता है। सो यह मानना चाहिए कि इस पद्य मे केवल विभाव (नायिका) का ही वर्णन है, परंतु चमत्कार-जनक होने के कारण, उसका किसी तरह रस में पर्यवसान हो जाता है।

३-व्रीडा (लज्जा)

स्त्रियों में पुरुष के मुख देखने आदि से और पुरुषों में प्रतिज्ञाभंग तथा पराजय भादिसे उत्पन्न होनेवाली और विवर्णता तथा नीचा-मुख प्रादि अनुभावों को उत्पन्न करनेवाली जो एक प्रकार की चित्तवृत्ति है, उसे 'ब्रीडा' कहते हैं। जैसे