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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२

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हिन्दी
विश्वकोष


इ- १ संस्कृत और हिन्दी वर्णमाला का तृतीय स्वर। इकारका उच्चारणस्थान तालु है। संस्कृतव्याकरणके मतसे इसे अट्ठारह प्रकार बोलते हैं। प्रथम ह्रस्व दीर्घ और प्लुत तीन भेद हैं। फिर उनमें प्रत्येक उदात्त, अनुदात्त और स्वरित रहता है। यथा, - १ ह्रस्व उदात्त, २ ह्रस्व अनुदात्त, ३ ह्रस्व स्वरित, ४ दीर्घ उदात्त, ५ दीर्घ अनुदात्त, ६ दीर्घ स्वरित, ७ प्लुत उदात्त, ८ प्लुत अनुदात्त, ९ प्लुत स्वरित। उपरोक्त नौर उच्चारण अनुनासिक और निरनुनासिक होनेसे अट्ठारह रूप धारण करते हैं। इकारके पर्याय यह हैं-सूक्ष्म, शाल्मली, विद्या, चन्द्र, पूषा, सुगुह्यक, सुमित्र, सुन्दर, वीर, कोटर,पथ, भ्रूमध्य, माधव, तुष्टि, दक्षनेत्र, नासिका, शान्त, कान्त, कामिनी, काम, विघ्नविनायक, नेपाल, भरणी, रुद्र, नित्या, क्लिन्ना, पावका। (वर्णाभिधान) इकार सुगन्धयुक्त, कुसुमसदृश और हरि, ब्रह्मा, शक्ति, परमब्रह्म एवं रुद्रमय है। यही मूर्तिमान् कुण्डली मालूम पड़ता है। (कामधेनुतन्त्र)

(सं॰ पु॰) अस्य विष्णोरपत्यम्, आ-इञ्। २ विष्णुके अपत्य कामदेव। यह रुक्मिणीके गर्भसे


उत्पन्न रहे। (हरिवंश १६२ अ॰) (अव्य॰) नञर्थकस्य इदम्, अ-इञ्। ३ खेद‍! अफ़सोस! हाय! ४ प्रकोपोक्ति! गुस्सकी बात! ५ निष्ठुर वाक्य! सख़ूत बातचीत! ६ दया! रहम! रामराम! ७ निराकरण! दूर! ८ प्रत्यक्ष! आंखके सामने! ९ सन्निधि! नज़दीकी! १० दुःखभावन! तकलीफ़दिही! ११ क्रोध! ग़ुस्सा! १२ विक्रोध! झुंझलाहट! १३ विस्मय! ताज्जुब! १४ सम्बोधन! पुकार! १५ माधव! १६ सूक्ष्मयज्ञ! १७ विद्या! इल्म! १८ दक्षिण लोचन! दाहिनी आंख! १९ गन्धर्व। २० पाञ्चजन्य। २१ मथाङ्कुर।
इंगुरौटी (हिं॰ स्त्री॰) ईंगुर रखनेकी डब्बी।
इंगुवा (हिं॰) इङ्गुद देखो।
इंचना (हिं॰ क्रि॰) आकर्षित होना, खिंचना, तनना।
इंटकोहरा (हिं॰ पु॰) ईंटका चूर।
इंटाई (हिं॰ स्त्री॰) पक्षिविशेष, किसी क़िस्मकी पेड़की।
इंडहर (हिं॰ पु॰) भक्ष्य द्वव्य विशेष, किसी क़िस्मका सालन। उड़द और चनेकी दाल साथ-साथ भिगोकर बारीक-बारीक पीस डालते और लम्बे-लम्बे