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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६९५

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७१० वखमाचारो विजयनगराधिपति कृष्णदेवको सभामे पहुँच कर घटा तथा वामा मे रति और गधिकाको उत्पत्ति हुई। रोधा. के स्मारी ब्राह्मणों को तर्कमे परास्त किया । पीछे ये पं लोमकृपसे तीस फोटि गोप'इनामों तथा श्रीकृष्णा वहांके चैप्पोंके आचार्य पद पर अभिषिक्त हुए। यहांग्मे । लोमकृपसे तीन मी कोटि गोपने जन्म प्रहण किया। उज्जयिनी नगरी जा कर शिप्रा-तट पर पीपल वृक्षके पारले गोलोज्यासी, पीछे वृन्दावननिवानी, गाय और नीचे रहने लगे। यह स्थान आज भी उनको बठक फह पछडे तक भी उनके लोमरुपमे उत्पन्न हुए। श्रीकृष्णने कर प्रसिद्ध है। अनुप्रद करके उनसे पक गाय महादेवको दी थो। उस मधुराकं घाट पर इसी प्रकारकी उनकी एक और बौटक | पुराणके सृष्टि प्रकरणमे श्रीकृष्णक किशोररूप को ही देखी जाती है। चुनारसे एक कोस पूरव उनके नाम पर सृष्टिकर्ता यतलाया है। एक मठ और मन्दिर विद्यमान है । उस मठके प्राङ्गणमें जो बालभाचार्य कह गये हैं, कि परमेश्वरको उपासना कृप है ग्रह आचार्य कुया कहलाता है । उज्जयिनीमे कुछ उपवासको सायश्यकता नहीं, अन्न वनका लश पानेका दिन रह कर वे वृन्दावन लौटे। श्रीकृष्ण उनकी अचला भी प्रयोजन नहीं, उनमें कठोर तपस्याकी भी आवश्यक्ता भक्ति देख पर वडे मांतुष्ट हुप और अति मनोहर रूपमे | नही ; उत्तम वस्त्र परिधान तथा मुग्नाद्य अन्न-भोजनादि दर्शन दे पर उन्हें वालगोपालको संवाका प्रचार करने सभी विषय नोंका सम्भोग कर उनको संवा परो। का आदेश दिया। यशार्शमें यह सम्प्रदायो वैष्णव अतिमात्र विषयी चोर ___ वल्लभाचार्याका मृत्युघटनाविषयक माल्यान बडा | भोगविलासी होते हैं। सभी गोम्यामी गृहस्थ है। ही विस्मयकर है । वे शेषावस्थामे कुछ दिन वाराणसीके सम्प्रदाय प्रवर्तक यल्लभाचार्य यद्यपि पहले संन्यासी थे, जेटनवडम ठहरे थे। उस जेठनब के निकट माज मी पर लोगोंफा पहना है, कि पाछे उन्होंने फिरसे गाई ध्या- उनका पक मठ दृष्टिगोचर होता है । मालीला शेष धमका अवलम्बन किया था । सेवागण गौरवामियों करके वे एक दिन हनुमानघाटके गङ्गाजल में स्नान परने का उत्तमोत्तम यहु मूल्य वस्त्र पहनने देने हे तया चवाने, पैठे। कहते हैं, कि गोता लगाते ही वे अन्तर्हिन हो गये। चूसने, चाटने, पीने योग्य सुरम द्रव्य भोजन कराते हैं। इसके बाद उस स्थानसे एक देदीप्यमान अग्नि-गिना मियाँके ऊपर गोरवामियोंका अत्यन्त प्रभुत्व देवने. प्रदीप्त हो उठी। वह शिवा अनेक दर्शकों के सामने में आता है। यहां तक कि शिष्य लोग उन्हे नन, मन स्वर्गारोहण करने लगी और आखिर आकाश लीन और धन ये तीनों ही समर्पण परे गे, ऐसा स्पष्ट नियम हो गई। है। बहुतेरे सेवक व्यवमायां हैं। गोस्वामी भी विस्तृत यद्यपि महाभारतादि ग्रन्थों में विष्णु और कृष्णके वाणिज्य व्यनसायमें ध्यान रहते हैं तथा तीर्धाभ्रमणोप अभेदरूपका वर्णन है तशा श्रोभागवनमें उनकी केलि | लक्षम दूर दूर देश जा कर वाणिज्य व्यवसाय करते हैं। कौतुकपूर्ण यौवनलीलाका सविस्तार विवरण पाया देव-सेवाके विषयम अन्यान्य सम्प्रदायोके साथ इन जाता है तथापि विष्णुकी अपेक्षा कृष्णका प्राधान्य वर्णन लोगोंकी विशेष विभिन्नता नहीं है। इनके घरमे, मन्दिर इन दोनों प्रन्योंमे कही भी नहीं देखा जाता । किन्तु में गोपाल और राधाकृष्ण तथा कृष्णावतार सम्बन्धीय कहीं कहो श्रीकृष्णके बालरूपकी उपासनाकी सुस्पष्ट अन्यान्य प्रतिमूत्ति प्रतिष्ठित रहती है। ये सय प्रतिमूत्ति विधि पाई जाती है। धातुकी वनो होती हैं। ये लोग दिनमें आठ वार करके ___ ब्रह्मवैवर्तपुराणमे लिखा है, कि वृन्दावनवासी श्रीकृष्णकी सेवा करते है। गोपाल होसे यह चराचर विश्व उत्पन्न हुआ है। उनके मङ्गलारति । सूर्योदयक आध घण्टा वाद श्रीकृष्ण दक्षिण पार्श्वसे नारायण, वाम पार्शसे महादेव, नाशि-! को शय्या परसे उठा कर आसन पर विठाते और ताम्बूल पद्मसे ब्रह्मा, वक्षःस्थलसे धर्म, मुखने सरस्वती, मनसे सम्बलितयत् किञ्चित जलपानकी सामग्री उन्हें चढाते लक्ष्मो, बुद्धिले दुर्गा, जिहासे सावित्री, मानसमे कामदेव है। इस समय वहां दोप रखा जाता है।