पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१५५

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(१४७) उसके नौकर आ जा सकते थे पर न वह और न उस का बेटा घर से निकल सकता था। दो दिन पीछे रामसिंह उस के पास आया और उस से कहने लगा, 'आप बड़े सङ्कट में पड़ गये हैं ; आप सावधान रहिये, मैं भर सक आप की सहायता करूंगा क्योंकि मेरे पिता बाप को बचन दे चुके हैं कि आप की कोई हानि न होने पायेगी। शिवाजी ने अब जाना कि अपने को मुग़ल बादशाह के बस में करके मैं ने बड़ी भूल की। उस ने समझ लिया कि जो मैं निकल न सका तो मेरी यही जान जायगी। लड़ाई होने पर उस के पास इतने सिपाही कहाँ थे जो बादशाही सेना से लड़ सकते। अब वह यही विचारने लगा कि किसी उपाय से इल सङ्कट से निकलना चाहिये। उस ने बादशाह को लिख भेजा, कि “हिन्दुस्तान की आबोहवा महरठों का स्वास्थ्य बिगाड़ रही है इस से आज्ञा हो तो अपनी सेना अपने देश को भेज दूंँ।

२-बादशाह ने तुरन्त आशा दे दी। उस ने अपने मन में

सोचा कि यह महरठा बड़ा उल्लू है जो अपना सिपाही भेज रहा है । अब इस का कोई बचानेवाला न रह जायगा और मैं जो चाहूँगा सो करूंगा। और उन के जाने पर शिवाजी और उसके बेटे पर शाही पहरा ढीला कर दिया गया।

३----शिवाजी तब रोगी बन गया। वह कराहता था