पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(१८४)


इच्छा न थी। एक दिन उस का मित्र उसको देखने आया। उसने देखा कि एक पिस्तौल मेज़ पर रखा है। कलाइव ने उस से कहा कि यह पिस्तौल खिड़की की ओर करके छोड़ दो। उस के मित्र ने वह पिस्तौल दाग दिया। पिस्तौल के दगते ही क्लाइव उछल पड़ा और बोला मैं समझता हूँ कि मेरे भाग्य अच्छे हैं मैंने दो बार पिस्तौल अपने सिर पर सीधा किया पर दोनों बार न दगा।

 ४-क्लाइव अपनी नौकरी से बहुत चिढ़ता था।

अभिमानी होने के कारण वह अपने अफसरों से भी मिलना ही न चाहता था। एक बार उस ने गवरनर के सेक्रेटरी के साथ अनुचित बर्ताव किया। गवरनर ने उसे हुक्म दिया कि सेक्रटरी से क्षमा मांगो। लाइव जानता था कि गवरनर की आज्ञ माननी ही पड़ेगी। उसका जी तो नहीं चाहता था पर वह सेक्रटरी के पास गया और कहा कि मैं अपनी गुस्ताखी की क्षमा चाहता हूँ। सेक्रेटरी जो इस जबान मुहरिर पर कड़ाई नहीं करना चाहता था बोला, 'बहुत अच्छा," तुम इस बात को भूल जाओ आज साँझ को खाना हमारे ही साथ खाना। क्लाइव ने उत्तर दिया, नहीं साहब, यह मुझ ले नहीं होगा, गवरनर ने मुझे आप के साथ खाना खाने की आशा नहीं दी है।"

 ५-कौन जानता था कि यह अभिमानी नटखट लड़का

दस ही बरस में अपने समय का सब से बड़ा आदमी