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क्लाइव ऐसा बहादुर अफसर ना था उनहोने विचार किया कि हम इतनी बड़ी सेना का सामना नहीं कर सकते यह सोच कर अपने बाल बच्चों को जहाज पर भेज दिया और किला नवाब को इस शर्त पर सौंप दिया कि उन के प्राण बचा दिये जाये।

३. सिराजुदौला जब सो गया तो उस के सिपाहियों ने

अगरेज कैदियों को जो गिनती में १४६ से एक छोटी सी कोटरी में बन्द कर दिया। यह कोठरी एक ही भादरी के बन्द करने को बनाई गई थी। वह इतनी गर्म और अंधेरी थी कि उस को लोग काल कोटरी कहते थे। यहाँ वह लोग रात भर रखे गये। उन्हों ने दूर सिपाहियों की बहुत कुछ विवती की इमें बाहर कर दो पर सिपाहियों से कुल मी न सुना। और वह एक एक करके गिरते गये और मर गये। सबेरे जब किवाड़ खुले तो उसमें से केवल २३ जीते निकले।

४-जब यह दुख का समाचार मद्रास पहुँचा अङ्ग्रेजों को बड़ा क्रोध और शोक हुआ। उसी समय कर्नल क्लाइव नई सेना लेकर विलायत से फिर आश था। वह . तुरन्त बाल को समुद्र की राह से चल पड़ा।

। पर उसे यहाँ पहुँचते पहुँचते तीन महीने लग गये। आज काल इस यात्रा में समुद्र मागले चार दिन और रेल से दो दिन लगते हैं। पर उस समय न तो स्टीमर थे न रेल ही थी। जहाज़ से उतरते हो क्लाइव ने बिना कुछ मार काट किये हुए कलकता फिर अपने हाथ में ले लिया।