पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/२११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

"लड़का अभी बहुत छोटा है इसे भी रहने दीजिये मैं इसका खच देकर इसको अक्सफोर्ड के कालिया में भेजूंगा, पढ़ कर वह बड़ा विद्वान हो जायगा। उसके चाचा ने जो आपापी शा कहा कि नहीं अश इसको लिखना और हिसाब सोचना चाहिये क्योंकि इस को व्यापार करना है। उन दिनों अच्छे स्कूल में भी लड़के, लेदिन या यूनानी भाषा के लिया कुछ न सीखते थे। हेस्टिकर व एक और ब्लू कोट स्कूल भेजा गया। यहां साल भर रह कर उसने लिखना और हिसाबकिताब खोया। अन्न उसके चाचा ने उसे ईस्ट इण्डिया कम्पनी के दावों के पास किरानी की जगह के लिये अरजी देने को कहा। अगले पृष्ट पर हम हेस्टिङ्गस् की अडरेजी जैसी कि उसने अपने हाथ से लिखी थी उसका चिन्न देते हैं। यह अरजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी के दफ्तर में रखी रही और अभी देखी जा सकती है। उसको जगह मिल गई और वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने विधारा कि जद मैं हिन्दु- स्थान जाऊँगा तो मैं बड़ी मेहनत करूंगा और अपनी सनवाह बचाऊँगा और लौट कर डेलस्फोर्ड मोल ले लूँगा। ....शायद बीस बरस की वस्था में भदास पहुँचा। हेस्टिङ्गस् की आयु और भी कम थी जब वह कलकत्ता सन् १७५० ई० में पहुंचा, वह सत्रह ही बरस का था। इसके चौबीस बरस पीछे यह सत्रह बरस का लड़का भारतवर्ष का गबरलर जेनरेल हो गया।