पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/३०

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७-विक्रम बड़े प्रतापी राजा और बड़े धीर तो थे ही, उनका न्याय भी बड़ा प्रसिद्ध था। लोग कहते थे कि उनले सुशावर भ्याय करनेवाला पहले कभी हुआ न आज तक हुमा है। उनले ज्यार में कभी भूल चूक न्द हुई। जो कोई उनके पास न्याय कराने खाता वह हारता तो भी प्रसन्न रहता और जीतता तो भी उनकी बड़ाई करता था, जिस सिंहासन पर वह बैठते थे उसमें सिंह के कप के बारह पाये थे। गांव के लोग न उस सिंहालाह को भूले और न उस पर बैठनेवाले न्यायकारी राजा को आज तक लोग अच्छे न्यायाधीश को कहते हैं कि यह विक्रम के सिंहासन पर बैठा है! इस कहावत की जड़ एक विचित्र कहानी है जो इस सिंहासन के विषय में प्रसिद्ध है। ८-विक्रम के सैकड़ों बरस पीछे जिस नगर में वह राज करते थे, वह निपट उजाड़ हो गया था और उस पर जंगल के पेड़ उग आये थे। कुछ बलदियों के लड़के इसी धन में खेला करते थे। एक दिन दो लड़के आपस में लड़ने लगे और एक तीसरे लड़के से बोले कि हमारा न्याय कर दो। वह एक छोटे टीले पर बैठ गया जिस पर घास अमी थो और दोनों लड़कों से बोला कि हम हाकिम बनते हैं तुम्हारा न्याय करेंगे। दोनों लड़को ने उससे अपना अपना व्यौरा कहा। हाकिम लड़के ने चट न्याय