पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/६३

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निकले थे, तोबड़ों में जौ का दाना भरवा कर उसके मुंह से बंधवाया मानो वह गदहे और खचर थे और मर्द कहलाने के योग्य न थे। इन सरदारों को बड़ी ग्लानि हुई और वह एक बार फिर लड़ने और अपने को मर्द सिद्ध करने को तैयार हो गये। 2---जब सब ठीक हो गया तो महम्मद गोरी काम से १२०००० अफ़सानों और तुरकों की सेना साथ लिये हुए एक बार फिर हिन्दुस्थान के मैदानों में उतरा। पृथ्वीराज फिर अपने चौहानों को लेकर उनका सामना करने को आगे बढ़ा। कई राजपूत राजा अपने सगोतियों के साथ उसकी सहायता को आये पर जयचन्द और राठौर और जो राजपूत उनके पक्ष के थे अलग रहे। बड़ो भारी लड़ाई हुई। महम्मद मोरी ने एक चाल चली। लड़ाई होते होते उसने ऐलः दिखलाया मानो खेत छोड़ कर भागा जा रहा है। राजपूत अपनी पाति तोड़ कर उसके पीछे दौड़े जब महम्मद ग़ोरी ने जाना कि राजपूत छिटक गये तो वह लौट पड़ा और घमासान लड़ाई होने लगी। पृथ्वीराज मारा गया। राजपूत हार गये और उनके बड़े बड़े वीर कट मरे। ३--यह समाचार दिल्ली पहुंचा तो संयुक्ता और राजपूत खियों के साथ आग में जल कर भर गई। अफ़ग़ानियों ने दिल्ली और अजमेर पर अपना अधिकार जमा लिया और बहुतला लूट का माल लेकर अपने देश को लौट गये।