पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/८४

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मन में सोचा कहीं यही दूर देश का व्याह न हो जो बुढ़िया ने कहा था। करन राय सुरू करने भी न पाया था कि उसको तुरकी सेना ने पकड़ लिया। उसको अपनी जान बचाकर भागना पड़ा और उसने देवल देवी को एक दूसरी राह देवगिरि मे दिया। वह राह भो तुरकी सवारों से भनी थी सो वह अपनी बाई के साथ अलोरा की गुफाओं में लाभग एक महीना छिपी रही। ८-अलाउद्दीन के सैनिकों को बहुत डूंडजे पर भी कुछ पता ने लगा। अन्त में निराश होकर दिल्ली की ओर फिर रहे थे कि वह लोग अलोरा को सुप्रसिद्ध शुभागों को देखने गये जो राह में पड़ी। यहाँ अचानक उनके हाथ वही राजकुमारी लग गई जिसकी खोज में फिर रहे थे। उसे बह दिल्ली ले गये और उसकी माँ को सौंप दिया। कुछ दिन पीछे अलाउद्दीन के बेटे खिजर ने उसको देखा और उसपर मोहित हो गया। वह भी उसे चाहती थी और दोनों का विवाह हो गया। इस रीति से उसके जीवन का ताना दूर देश के बाने के साथ बुना गया। यह कथा फारसी के कवि खुसरो ने एक प्रसिद्ध काव्य में वर्णन की है।