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पृष्ठ:हीराबाई.djvu/१९

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बेहयाई का बोरका



गले मिल वह आजन्म के लिये उससे बिदा होती है। कमलादेवी ने अपने बहुमूल्य गहने पहराकर अपने हाथ से हीरा का शृंगार किया, फिर उसे गले लगा और रोकर कहा,-"बहिन! मुझे भूल न जाना।"

हीरा भी रोने लगी और बोली,-"प्यारी कमला! मैं तुम्हारी भलाइयों को जीतेजी कभी भूल सकती हूं! गो, अपने शौहर के मरने से मैं दुनियां के ऐशोआराम को हराम समझ चुकी थी, पर प्यारी कमला! तुम्हारे लिये मैं ज़हर की घूंट पीकर सब कुछ सहूंगी और सभी काम करूंगी; मगर ख़ैर, तुम मेरी उस बात को न भूलना। मैं दिल्ली पहुंचतेही शाही फ़ौज देवलदेवी के पकड़लाने के लिए भेजूंगी।"

इस पर कमला ने "अच्छा" कहकर उसे डोलेपर सवार किया।

निदान, हीरा, उर्फ़ कमला दिल्ली पहुंची। वह ऐसी सुन्दर थी कि लंपट अ़लाउद्दीन उसे देखतेही उस पर मोहित हो गया और तुरंत उसने क़ाजी को बुला उससे निक़ाह करके उसे अपनी प्रधान बेग़म बना लिया।