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पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/११३

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चौदहवाँ परिच्छेद

अब उनसे न रहा गया। उन्होंने उसकी छाती पर हाथ धरके कहा―"प्यारी मेरी! तुम्हें पाकर मैं अपने को महाभाग्य- वान् समझता था। मैंने अपना सुख-संपत्ति, आशा-विश्वास और प्रेम सभी कुछ तुम पर न्योछावर कर दिया था। तब मुझे ज्ञान भी नहीं था कि तुम पराई जूठन हो। हाय! जब इतने दिन यह बात छिपी रही थी, तो अब तुमने इसे क्यों कह दिया? तुम तो मेरे हृदय में ऐसी चिपट रही हो कि छुटाने से प्राणांत-कष्ट होता है। मेरी स्त्री पुंश्चली है, जब लोग यह जानेंगे, तो क्या कहेंगे?" इतना कहकर वह बिलख-बिलख- कर रोने लगे। शशि की आँखों से भी ढर-ढर पानी बरस रहा था। अब उसकी दशा बिगड़ चली। श्वास देर-देर से आने लगी। हिचकी बढ़ गई। सुंदरलाल ने अत्यंत मर्मा- हत होकर कहा―"देखो, अब इस अभागिनी का अंत-समय आ गया है। मरनेवाले से किसी का क्या वैर? मेरे दयालु मित्र! इसे क्षमा कर दो।" यह कहकर सुंदर बाबू फूट-फूटकर रोने लगे।

अब तीनो टकटकी बाँधकर उसकी ओर देखने लगे। संकेत से उपने पानी माँगा। शारदा ने उसके मुख में पानी डाल दिया। वह पानी पीकर, हाथ जोड़कर शारदा की ओर देखने लगी। कुछ कहना चाहा, पर कहा न गया। आँखों से टप-टप आँसू टपकने लगे। फिर बोली―"स्वामी ने क्षमा नहीं किया, पर दयामयी! तुम क्षमा………"शब्द रुक