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पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/११६

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हृदय की परख

कहा―"ऐसी बात? मेरी प्राण! अब तुम्हीं तो मेरी आशा की छड़ी हो। अब तक ग़ौर की तरह रही है। मुझे क्या ख़बर थी बेटा कि तू मेरी ही है।" यह कहकर शारदा ने उसे छाती में छिपा लिया। सरला कुछ शांत होकर बोली― "यह क्या? मेरी असली मा तो तुमने देख ही ली, फिर भी तुम ऐसी बात क्यों कहती हो?"

"असली मा तेरी मैं हूँ, सरला प्यारी। उस बात को अब तू भूल ही जा।" कुछ देर तक सरला दोनो हाथों से मुँह ढाँपकर रोती रही। शारदा बड़ी दुःखित हो रही थी। सरला ने उसे और भी मर्माहत कर दिया। अंत में सरला ने कहा―"क्या बात सब पर प्रकट हो गई?"

शारदा ने धीरे से कहा―"हाँ।"

सरला ने एक ठंडी साँस लेकर कहा―"अब वह कैसी है?"

"वह अभागिती अब संसार में नहीं है।"

सरला हड़बड़ाकर उठ खड़ी हुई―"हाय! यह क्या हुआ?"

शारदा ने सरला को पीठ पर हाथ रखकर कहा―"शांत हो बेटा! होना था, सो हो गया। अच्छा ही हुआ। अब उसका मरना ही अच्छा था। इसी में उसकी भलाई थी।" सरला बोली―"क्या उसने विष खा लिया?"

"नहीं, उस समय से वह घोर सन्निपात में जो ग्रसित हुई, तो फिर न उठी, पर मरती बार बात साफ़-साफ़ कह गई।"