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पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१९२

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प्रस्फोट] [द्वितीय खंड . . ...mornmmwwimm जो लोग अपनी जान लडाकर उसमें शामिल नहीं हुए थे उन्हें भी क्रांति युद्धमें हाथ बॅटाने की हिम्मत हो जाती ओर भारत स्वतंत्र बन गया होता !! मतलब, सिक्खोके देशद्रोह तथा मेरटके अचानक विद्रोहसे पंजाबमें क्रातिकी जडें खोखली हो गयीं! और पजाब तो दिल्लीकी रीढसा होनेसे क्रांतिकारियोंकी हिम्मत पस्त हो गयी! अबतक हम क्रांतिकारी सैनिकों तथा अंग्रेजोकी पजाब तथा दिल्लीकी गतिविधिका तीन सप्ताहोंका वर्णन कर चुके हैं । इन सप्ताहोंमें जो भी हो सके, सिद्धता करनेपर अंग्रेज तुले हुए थे। इसीके अनुसार कलकत्तेसे इलाहाबाहकी ओर सहायक गोरी पलटनोका तांता बध गया था। बहुत बारीकीसे जॉच हो रही थी कि बम्बई, मद्र स, राजपताना तथा सिंधमें क्रातिदलके विद्रोहको सहानुभूति रखनेवाला कोई है या नहीं! और पजाबके समान ठीक समयपर ही उन सहानुभूति रखनेवालोंका सिर 'कुचल देनेका प्रबध हो गया था। क्रातिकी सूचना पहलेसें मिल गयी इसके लिए ईसाको धन्यवाद देते हुए अंग्रेजोका यह विश्वास था कि कई स्थानोमें क्रातिकी ज्वालाको बुझाने में उन्हें सफलता मिली है। इस प्रकार इन तीन सप्ताहोंमें अग्रेज अपना संगठन कर रहे थे। जहाँ क्रातिकारियोंकी तरफ इधर उधरकी मामूली हलचलको छोड ऊपरसे शेष सत्र उढा मामला था। ३० मईको दोनों पक्षोकी यही हालत थी; किन्तु अब परिस्थितिने करवट बदली और अंग्रेजोका आत्मविश्वास चूर चूर कैसे हो गया तथा तीन सप्ताह तक असीम अत्याचार तथा हानिको सहकर मी कातिकी ज्वालाएँ फिरसे कैसे भडक उठीं इस . आगामी इतिहासकी ओर अत्र ध्यान देना चाहिये । निश्चित नियमोंसे किसीभी क्रांतिका नियमन आज तक नही हुआ है। क्राति कोई अचूक चलनेवाली घडी थोडे ही है ? उसकी गतिविधिकी रीति कुछ और ही होती है। हॉ, एक मोटे सिद्धान्तसे कातिका नियमन होता है, बस ! छोटे मोटे नियम तो उसके एक धमाकेसे तितर बितर हो जाते हैं । क्रांतिको सूचित करनेवाला एक ही नारा होता है; ' रुकना तेरा काम नहीं, चलना तेरी शान !' कमी तो एकदम अनोखी तथा अनपेक्षित घटनाएँ