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पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२२४

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अस्फोट] १८६ [द्वितीय खड सादरकी छातीपर वार हुआ और वह नीचे गिरकर मर गया । तब सिपाहियोंने एक दूसरेको गले लगाया और सब मिलकर छावनीको चल पडे । दो सवार पहले दौड गये थे, जिन्होंने छावनीमे सिपाहियोको सब किस्सा -सुनाया। इस समय सचलन भूमिपर जो दृश्य था, वह अवर्णनीय था। अग्रेज अफसरोंके मुंहसे आज्ञाका शब्द निकलतेही सॉय सॉय करती गोलियों चली आती। अॅडज्युटट टयुअर्ड प्लकेट, कार्टर मास्टर प्रिगल, मनरो, बर्च, ले. इनीज सबके सब ढेर हो गये ! अब संचलन-भूमिसे उत्तेजित सिपाही अंग्रेजोंके घर जलाते घूमने लगे। जब उन्हे, पता चला कि कुछ गोरे मेसमे छिये बैठे है तो वहाँ जाकर सबके सब गोरोका काम तमाम कर दिया! हम पहले बता चुके है, कि इलाहाबाटके किलेपर कब्जा रखना महत्त्वपूर्ण चाल थी। इसी किलेमे अंग्रेजोंके परिवार थे तथा गोला बारूद का भडारा भरा पडा था। इन सबकी रक्षा का भार सिक्खोंको सौपा गया था। सब सिपाही अब तोपके धडाके के इशारेकी राह देख रहे थे। क्यो कि, वहॉके सिक्ख तथा अन्य सिपाहियोंने यह निश्चय किया था, कि बलवा कर अंग्रेजोको किलेके बाहर कर देने की खबर तोपोके धडाकोंसे दी जायगी। किन्तु किलेके सिक्खोंने जैन मौकेपर विश्वासघात किया। अंग्रेजी यूनियन जॅकको किलेसे हटानेसे इनकार करही दिया: साथ साथ अभी आये सैनिकोंको निःशस्त्र कर निकाल बाहर कर देनेमे अंग्रेनोकी सहायता की । आजमी अंग्रेजोंको इस बातपर अचभा होता है, कि जैसे बॉके समयम क्रातिकारियोंको धोखा देनेपर सिक्ख क्योंकर उतारू हुए ? यदि धोखा न होता तो केवल आध घटेमें इलाहाबादका यह प्रचड किला क्रांतिकारियोंके कब्जे में आ जाता। याने, घडीभरमें अंग्रेजी शासनकी रीढही टूट जाती। किन्तु, हाय, यह अनमोल आध घटा अपने देशवधुओ और अपनी मातृभूमिको रौंध डालनेमें सिक्खोने बिताया। किलेके विद्रोहियोंने बार बार वलवा किया किन्तु सिक्खोंने अंग्रेजोका ही साथ दिया और अपने देशभाइयोंके हथियार छिनकर उन्हे अंग्रेजोंकी आज्ञासे किलेके बाहर कर दिया। इस तरह किला फिरसे अंग्रेजोंके आधिपत्यमे रहा। किन्तु, सौभाग्यसे ये चारसौ देशद्रोही सिक्खही कोई सारा प्रयाग न