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पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३२४

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अमिप्रलय २८० [ तीसरा खंड को ताँता बॉध कर आ रहे थे; जिस से युद्ध-सामग्री तथा सैनिक संख्या की चिंता करनेका क्रांतिकारियों को कोसी कारण न था। जिस दशा में क्रांति. कारक सेना चढामी की नीतिपर चलकर, अंग्रेजी सेना को अक कदम भी आगे बढने से रोक कर असे असकी जगह पर बद कर सकती थी। कभी जोरदार इमला कर, कभी घमासान मुठभेड कर, कभी मामूली चढाी कर, अपनी किसी तरह विशेष हानी न होने दे कर, क्रांतिकारी दस्ते फिर शहर में लौट आते। जिस सतानेवाले युद्धतंत्र से अंग्रेजों में डर समा गया जिस से किसी प्रकार से आक्रमण की हिम्मत वे न कर सकते । १२ जन को, क्रांतिकारी दिल्ली नगर से बाहर निकले और झाडझखाड तथा नीची भूमिके गढ़ों से होकर छिपे छिपे अंग्रेजों के शिबिर से लगभग ५० फीट पर जा पहुंचे और अंग्रेजों के आहट पाने के पहले सुन पर हमला कर बैठे। अग्रेजों के कमी तोपची भिस कशमकश में काम आये।श्री. नॉक्स को तो एक सिपाहीने पहली ही गोली से अडा दिया।अिसी समय दूसरे क्रातिकारी दस्तेने अग्रेजों की पिछाडी पर धावा बोल दिया और वहाँ भी घमासान लहामी हुी। अंग्रेजों के दाहिने पासे पर भी 'हिंदुराव की कोठी । पर सिपाहियोंने जोरदार हमला किया। “अिस वार वह हिंदी अस्थायी टुकडी, जिस की वफादारी पर हमे बेहद भरों सा था, क्रांतिकारियों पर चढ़ गयी। किन्तु अन बदमाशों का अिरादा जब हमें मालूम हुआ तब इमारी तोपों के मुंह झुनकी ओर घूमे और यह देख कर वे असीम अतावली से इट गये और तोपों की मार से बचे।* यहॉ का कमांडर मेजर रीड कहता है,“ये पैदल सैनिक जिस तरह आगे घुसे, मानों बडा जोरदार हमला कर रहे हो, किन्तु देखता क्या है, कि ये दुश्मनों से मिल रहे है; मेरा तो कलेजा मुंह में आ गया। परन्तु मैने अनपर तोपें दागने की आज्ञा दी; किन्तु ये बदमाश कब के दूर भाग गये थे अनसे शायद पांच छः भी न मारे गये हों। अिस प्रसंग के बाद हर सबेरे क्रांतिकारी सेना बाहर जा कर हमला करती और शाम को कुमाल से लौट आती । दिल्ली में बाहर से आये हुआ

  • के कृत सिंडियन म्यूटिनी खण्ड २, पृ. ४११.