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पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/१३९

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॥२३॥ शकुन्तलोवाच। रोलाछन्द। धर्म को पथ कहो वह मम पातमा प्रभू जोन। दान मे जो सुनो भूपति कति हैं मे तोन॥ होयगो मम पुत्र जो जुबराज सोई होय। देल जो यह बचन साचो भूप धर्म समोय ॥ कस्लु संगम सुनलु मम पति भए तुम गुणरेन । बैसंपायन उवाच । एबमस्तु सु कन्यो ता सों पायके नृप चेन ॥ गहो पाणि शकुसला को को संगम भूप। कहो दे विश्वास ऐसे बचन अानद रूप ॥ होत हों मे बिदा तुम सों सुमलु प्यारी बैन। आनिवे को भेजिहों मे तुम्हें सिबिका सेन ॥ बायो तुम भी मानद धाम को अभिराम । चले कहि यह भूप मुनि की धरे शशा माम ॥ दोय घटिका गएं बाए कन्व पाश्रम भोन। लाज बस सु शकुन्तला नहि कियो आगे गोंन ॥ दिव्य हग सों जानि बोले कन्व सब वृतान्त। अनाहत्य जो मोलि कीन्हो पुरुष संग नितान्त ॥ धर्म घातक नहीं नृप को ऊ जो गान्धर्व। करें होय सकाम दोउ म माहि अखर्ब ॥ धर्मधर दुधन्त भूपति परम उत्तम बंश ।