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पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/१९

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॥३॥ करता है कि मर्तलोक से आया हूं द्वारे को हजारों बल्कि जिस को देखता है उस को भी श्राप के लाषा है जिस से निहायत बेचेन है। यह बात स उठके द्वारे पर पाया। राजा ने देखते ही अष्टांग प्रनाम किया और उस ने दी और पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है और कोन स हाथ जोड़कर कहा कि स्वामी। बिक्रम भूपाल मर्तलोक का राजा हूं आप के चरन दरसन की: मेरे मन की इच्छा पूरी हुई श्राज मुझे कड़ोड़ यस और कड़ोड़ों दान किये का पुन्य और धन्य भाग चरन कंवल के दरसन ठुए बल्कि चौंसठ तीरथ न्हां लुना। बिक्रम का नाम सुनते ही शेशनाग मिला और ला मकान में ले गया अच्छी जगह बैठा क्षेम कुशल पूढ महाराज के दर्शन से सब आनन्द हैं। फिर कहा तुम । बाये हो और आते ठुए पंथ में तुम ने बलुत कष्ट पार बोला कि फनीनाथ। में ने जो कष्ट पाया सो स किये से बिसरा। फिर राजा को रने के लिये एक अ और बलुत से लोग टहल करने को और उन्ह लोगों से मेरी सेवा से भी तुम अधिक राजा की सेवा जानन पांच सात दिन राजा विक्रमा जीत वहां स्ला । बद लाथ जोड़कर कहा पच्चीनाथ । मुझे बिदा कीजि