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पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१७९

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विषा में यही करता छठा है तो वा उसकी ही मिट्टी की प्रतीबा हैं. दनुषी सहनभूति को डोर लगते हैं. खाली एकलअद्की के बारे में एक कबता नही बोलते थे. उदेश यही था की काम देव समाज प्रेम करके हिरदे में उपन करते है भाहूत इज़्ज़र करते हौं । काम देव थाबो वेष्टि कर थु.तु श्रक ऑर चैन से ना सो सके काम देव तो भौत अककगे हैं उसे में थोर रीदे से वृईदी कटी हूँ. जिस को मानसिक पीढ़ा है तब तक लोग जशन नही माना सकते है रीदे से बिंदु होकर तो बी मैने नही जीया है तो मिट्टी बोले बोलने वेल तो मेरा कहाँ सुनेगा क्रोध से रहित होज़ा हे मनीव इसका रीदे अक्चा कर..यदि प्रेम के बारे में करना क्ग=हाथी की वो वा भी वेशम करना चाहती थी . वा भी समाज में समान ओआना चातती थाई तू टीन या ओांच कर सकते है पा पर हम दोनो को जो औरता होगा उसे तो पीट अहोगा फूल हुआ पीड़ा को जिस तरह तोड़ लियाजाता हैं उस भाग्या में भी टेचा को भी माना जाता है. जो पर्वत तक गुसा हुआ र्हेता है पर वा नही मानता हैं वैसे ही बहुत सेमी तक समा कें रहे।।