गई हैं, षक्ति इनमें उन फथाओफा वर्णन रस्ता है जिनमें प्रचलित सत्य तथा विचार-धाराओंका समावेश रहता है । अनेक अवदानोंमैं है कां' के चरित्र चणित्त हैं 1 सबसे वडे "मडावस्तु अव- दान’ मैं दुद्धकै पूर्वजन्धीका क्योंरा दिया नुमा है दृ [ सन्दर्भ ग्रंथ…थेरीगश्या, सुरुर-दी प्रोसिडिङ्ग ग्राफ ही ओरिंधशक्ल कांग्रेस एट जिनेवा; गग्धर्वश, अपणा।"- शम, श्चिपृक्यग्न, ओलोनय'हँ-हँक्लीशा आफ पाली वैनुक्तिप्ट ( इण्डिया आफिस लाहप्रेरी है, सुमंगल-पिला- र्तिगौ ( होस रौंविस क्या कार्प-लर ), महावस्तु (सेनार्ट) ३ - अपराजिता-वस यनस्पनिकों संस्कृत भाषा में ‘विस्तुक्रान्ता’ कहते हैं । इसका पौधा क्रिस्कृल छोटा होता है । यह पृथ्वी पर त्तताकौ भाँति कैट्स जाता है, किंतु इसका विस्तार अधिक दुरु शरुनहींहोंता । 7 फुलके पत्ते बारी-, लम्बे तथा पाशूड्ड दक्कके होते हैं । फूल इसका मदरा लाल जोता है, कृछ २ गौल षर्णका समावेश' रहता है ऱसंका विशेष उपयोग ओषधिर्में ही होता है ऊँब्रतूकु पीलिया ) रोगमैं इसकी जड़ छाँछके साथ पिलाई जातो है 1 ववासीरके रोगीकों इसकी हैंडाड़डा रसंरिघोकै सस्महुँदृमिसाफ्ला देते हैं । ३ …आरादित्प…( प्रर्यम है यह कौकनका शिला- डाडे… वंशीय राजा था ।हुँ अपके समीप ११३८ ई० ३( शक ३ १ ०६० ) का जो शिलालेख मिला था, श्चमैं ऱसकां क्लोज प्रिलताहे । काश्मीरकै मओकै स्वीऊँटचरित्रपें भी नुहहरको जिस व्यपराक्षिय का ग्रर्णन मिला है कदाचित् वह यही अपगदित्य है । इस पुस्तकपा समय, डा० दुहहरके विचार को, ११३४-११४ए ईमृ तक्रका हो सकना है । जिस च्वंअणादिन्यका उल्लेख ओकंच्चरित्रपै आया है त्रुउसने "सोपारा ( सुपरिका ) से तेजकंठ नामक पंडित को अपने देंशका प्रतिनिधि नियत फर काश्लीरके पदिडतोंकौ सभाये भेजा था । यह पण्डितों की सभा काश्मीरकै राज्ञा जयसिंह ३( ११२९-१दृ५० ई० ) के समयमे दुई थी १ . . अपरादित्य-( द्वितीय) यह भी कौप्लाहे दृ'स्तिहिमृर वंशका दूसरा राजा हाँ गया' है । उस हृओड़कै भू/मेदान-सम्बन्धी पक्ष शिला-लेख उप- लाएँ' हैं । ज्जमैते दिमागी तारुलुकैका प्राप्त है हैशिलाक्लि ११८५ हैं' ( ११०६ शक ) का है, परख मेयो शिलाएँ-डा मिला है, सम्भषब्रदृ वह ११८७ई० यश-) का है! वसई तास्तुफेमैं प्राप्तदोण 2 शिहा'लेचौमैं से एंकका तो समय ११८१1 ईब्लो निश्चित है, फिन्तु दुसरेंका समय दिया दुआ ही नहीं है । छहों शिखर-लेसौमैं १२०३ई०कै माण्डवी कै समीप बिले पुर कैशीदेवकै शिलालेपपै अप- र्त्तफका वर्णन आया हैं । कदाचित यह वही अपरकि होगा । केशीदेप अपर्गष्का पुत्र था। याम्नत्ररुक स्मृतिके मित्ताक्षर विधान पर कोराई जो अपरफि टोका हैं. उसका कर्मा यही अपरा- दित्य था । इस दीकाके अस्तमे इसका उल्लेब्र आया है जिससे यह विदित होना हैं कि वह शिलाहार घरानेका राजा था ओर १३दों शताब्दी के आरम्भमैं मुभा होगा । १ १८७ ई० के पस्तमैं मिले दुर शिलालेखसेटुषता चलता है कि यह उस समय अयश्य रहा होगा, क्यों कि उस सैखभे अपरा दित्य ने अपने को अहाराजाधिराज तथा कोकनका द्दक्लर्ती कह कर उल्लेख क्रिया है अत: ऐसा अनुमान किया जा सकता है कि पश्चिनं मीयमृचालुश्य र्वशकै नाशकें पश्चात् जब सब ओर निरेंकुशताका ढंका ब्रज रहा जा, उसी समयक्रो' दिर्थातसे डाभ उटा कर अन्य सामन्दीकै सख्या यह अपरादिस्य भी स्वतन्त्र हो गया होगा आरान्तकच्चाअपरन्तिका ) हक्षिभोय माँएँ अथवा सरहद पर रहने वाली जानिर्योंमैं से यह भी एक प्रसिद्ध जाति थी । इसका 'आरम्भ' मामले भी उल्लेख होना है । नासिकर्में प्राप्त शिलालेमोमैं से रकमें इसका उल्लेख आया है किन्तु यह स्पष्ट पतानहीं लगता कि यह शब्द किसी प्रदेश बिशेयकै लिये व्यवहार किया गया है अथवा वहाँके निधासियोंकै लिये । इसका उल्लेख रुद्रदाधनके लूनागड़कै मिले हुम शिखा लेखमे भी मिलता है अशोक द्वारा शासित जावियोर्में यवन, कम्बोज द्दत्यादिकै साथ इनका भी उल्लेख आता है । पं० भगवान लालजी का कथन है फि ठाना जितेश सोपारा नामक जो गाँव है, वह अपरान्त-प्रद्देरा अथवा जातिका एक मुख्य स्थान रहा है । दृ आरुपार-आयुहैंदिरू विवेचन-यह . एकं रोग है । हिरुटीरिपा, मृगी रन्यादि हसीफा त्मा- मार है । 'स्मृति भूतार्य विज्ञानं आस्तसूपरि- घर्तने' द्वारा इसकी परिभापाकौ डाई है : ब्रर्थातू जिस रोगमें स्मृतिका नाश हो जाता है, उसे 'आ- स्मार कहते हैं । जब मनुष्यका शरीर तथा अग किसी अन्य व्याधियों कारण मलीन तथा उक्ति हो जाता है, अनियमित आहार-विहार द्वारा शक्ति
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