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मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं ।
मुकताहत्त मुकता चुगै, अब उड़ि अनंत न जाहि।।३६।।

सन्दर्भ—मान सरोवर मे आत्मा रूपी हस विश्राम कर रहे हैं।

भावार्थ—मानसरोवार भक्ति के शूद्ध जल से भरा हुआ है।। वहा आत्मा रुपी इंस क्रीड़ा कर रहे है, तथा भक्ति रुपी मोती चुप रहे हैंं अव्र वे उड़कर अनयत्र कही नही जाएंगे।

शब्दार्थ—सुभर=शुद्ध।

गगन गरजि अंमृत चबै, कदली कवल प्रकाश।
तहाँ कभीरा बंदिगी, कै कोेेई निज दास्र।।४०।।

सन्दर्भ—कबीर ब्रह्माण्ड मे स्थिति प्रिय की वन्दगी करता है।

भावर्थ—शूनय शिखर गढ मे अहनदनाद हो रहा है। अमृत की वर्षा हो रही है मौर सहस्त्र दल कमल विकसित हैं। कदली प्रकासित है। वहां पर कबीर,ईश्बराधना मे अनुरक्त है।

शब्दार्थ—गगन = ब्रह्माण्ड ।

नींव विहूॅलां देहुरी,देह विहूँरणां देव।
कबीर तहाँ बिलंबिया,करे अलप की सेव।।४१।।

सनदर्भ—कबीर अलख की सेवा मे अनुरक्त है।

भावार्थ—नीव से रहित देवालय मे निराकार देवता विद्यमान है ऐसे स्थान पर कबीर अलख की सेवा करने मे अनुरक्त है।

शब्दार्थ—देहुरा=देवालय। विहूरंला=रहित=विलंविया=विश्राम किया।

 देवल मांहे देहुरी, तिल जहे बिसतार ।
माहै पाती मांहि जल,माहै पूजणहारं ।।४२।।

सन्दर्भ—निर्गुण ब्रह्म उपासना अन्तस मे हो रहा है ।

भावार्थ—शरीर रूपी देवालय मे हो तिल समान सूक्ष्म विद्यमान हैं हृदय मे ही पुजा के पथ हैं, हृदय में ही जल है, हृदय मे पुजा करने वाला है।

शब्दार्थ—देव=देवालय।