पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/४७३

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७८८] [कबीर ३) मैं बौरी राम भरतार | इसमें सूफियों की पध्दति पर दाम्पत्य-प्रेम की व्यजना है | समभाव देखें -

           मेरे  तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई |
           जाके सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई |
           छांडि दई कुल की कानि, कहा करि है कोई |
 तथा-      मैं हरि बिन क्यों जिऊंरी माइ |
           पिव कारन बौरी भई, ज्यों घुन काठहि खाइ |     (मीराबाई)
                  (३४३)
    जौ मैं बौरा तौ रांम तोरा,
                 लोग मरम का जाँनै मोरा ||टेक||
    माला तिलक पहरि मनमानां, लोगनि रांम खिलौनां जांना ||
    थोरी भगति बहुत अहकारा, ऐसे भगता मिलै अपारा ||
    लोग कहै कबीर बौराना, कबीरा कौ मरम रांम भल जांनां ||
    शब्दार्थ- का== क्या |
    सन्दर्भ- कबीर का कहना है कि वाह्याडम्वर वाले उपासक की अपेक्षा सच्चे भक्त राम के         अधिक निकट रहते हैं |
    भावार्थ- हे राम मैं जो पागल हो रहा हूँ, वह तो तुम्हारे ही प्रेम में पागल हूँ | संसार के लोग

मेरे इस पागलपन का रहस्य क्या समझे? (वे मुझ को सामान्य पागल समझते हैं और मेरे ग्ज्ञान- भक्ति की बात नहीं जानते हैं | ) मनमाने ढंग से माला-तिलक धारण करने वाले लोग राम को खिलौना समझ कर तरह-तरह से सजाते हैं अर्थात यह काहिए कि औपचारिक पूजा के नाम पर लोग राम की प्रतिभा को खिलौना समझ कर माला-तिलक से सजाते हैं | ऐसे दिखावटी लोगो मे सच्ची भक्ति तो बहुत कम होती है और इनमे अहकार की माया बहुत होती है | ऐसे अहकारी भक्त बहुत मिलते हैं | लोग कहते हैं कि कबीर पागल हो गया है, परन्तु कबीर के इस पागलपन के रहस्य को (वास्तविक कारण को) भगवान राम अच्छी तरह जानते हैं |

अल्ंकार - १) गुढोत्कि- का जानै।

२) रूपक की व्यजना - राम खिलौना जाना | 

विशेष- १) वाह्याचार का विरोध है | २) भगवान का भक्त सासारिक व्यवहार में चतुर नहीं रह जाता है, वह पागल सा दिखाई देता है| ३) माला खिलौना- खिलौना जैसे व्यक्ति की विभिन्न वासनाओं की तृप्ति का साधन होना है, उसी प्रकार ब्रह्मा पूजा करने वाला भक्त भगवान की मूर्ति को अपनी कतिपय वासनाओं की तृप्ति का साधन मान बैठता है।