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पृष्ठ:Vivekananda - Jnana Yoga, Hindi.djvu/२१

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माया


उनमे से कितने मनुष्य इस संसार में जीवित है? सभी ज्ञानी लोग समझते हैं कि इस सुवर्ण लोम को प्राप्त करने की उनकी दो करोड़ में एक से अधिक सम्भावना नहीं है; तथापि प्रत्येक मनुष्य उसके लिये कठोर प्रयत्न करता है; किन्तु अधिकांश किसी को कुछ प्राप्त नहीं होता; यही माया है।

इस संसार में मृत्यु रात दिन गर्व से मस्तक ऊँचा किये धूम रही है; हम सोचते है कि हम सदा जीवित रहेगे। किसी समय राजा युधिष्ठिर से यह प्रश्न पूछा गया कि "इस पृथ्वी पर अत्यन्त आश्चर्य की बात क्या है?" राजा ने उत्तर दिया था, "नित्य ही लोग चारों ओर मर रहे हैं किन्तु जो जीवित है वे समझते है कि वे कभी मरेगे ही नहीं।" यही माया है।


प्रकार से अपने पति को फ्रिक्सस की देवताओ को बलि चढ़ा देने से सहमत किया। किन्तु बलिदान के पूर्व ही फ्रिक्सस की स्वर्गीया माता की आत्मा उनके सम्मुख आविर्भूत हुई और एक सुवर्ग लोम युक्त मेढे को उनके निकट लाकर उनको उस पर चढ़ कर समुद्र पार भाग जाने का आदेश देने लगी। मार्ग में उसकी बहिन हेल गिर कर डूब गई―फ्रिक्सस ने कृष्ण सागर की पूर्व दिशा में कलचिस नामक स्थान में उतर कर वहाँ के जिउस देवता को उसी मेंढे की बलि चढ़ा कर उसकी खाल को मार्स ( मंगल ) देवता के कुञ्ज में टाँग दिया। एक दैत्य उसकी रखवाली के लिये नियुक्त हुआ। कुछ दिन बाद इस सुवर्ग लोम की खाल को लाने के लिये आयामास का भतीजा जैसन उसके प्रतिद्वन्द्वी पेलियस द्वारा नियुक्त किया गया और वह आर्गो नामक एक बड़े जहाज में अनेक प्रसिद्ध वीर पुरुषों सहित बैठ कर नाना प्रकार के बाधा-विघ्नो को पार करता हुआ उक्त सुवर्ण लोम के लाने में सफल हुआ। ग्रीक पुरागों में यह कथा Argonautic Expedition नाम से विख्यात है।