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पृष्ठ:Vivekananda - Jnana Yoga, Hindi.djvu/२१६

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ज्ञानयोग

आप अपने देश की ही बात लीजिये―पृथ्वी पर इसके समान धनिको का देश दूसरा नहीं है―और दुःख कष्ट यहाँ किस प्रबल रूप में विराजमान है वह भी देखिये। अन्यान्य देशों की अपेक्षा यहाँ पागलों की संख्या कितनी अधिक है! इसका कारण है, यहाँ के लोगो की वासनाये अति तीव्र, अत्यन्त प्रबल हैं। यहाँ के लोगों को जीवन का स्तर सर्वदा ऊँचा ही रखना होता है। आप लोग एक वर्ष में जितना खर्च कर देते हैं, वह एक भारतीय के लिये जीवन भर की सम्पत्ति के बराबर है। और आप लोग दूसरों को उपदेश भी नहीं दे सकते कि खर्च कम करो, कारण, यहाँ चारों ओर की अवरथा ही ऐसी है कि किसी विशेष स्थान में इतने से कम में खर्च ही नहीं चलेगा―नहीं तो सामाजिक चक्र में आपको पिस जाना पड़ेगा। यह सामाजिक चक्र दिन रात घूम रहा है―वह विधवा के आँसुओं पर और अनाथ बालक-बालिकाओं के चीत्कार पर तनिक भी कान नहीं देता। आपको भी इसी समाज में आगे बढ़कर चलना होगा, नहीं तो इसी चक्र के नीचे पिस जाना होगा। यहाँ सभी जगह यही अवस्था है। आप लोगो की भोगसम्बन्धी धारणा भी अत्यधिक परिमाण में विकासप्राप्त हो गई है, आप का समाज भी अन्यान्य समाजो की अपेक्षा लोगों को अधिक आकर्षित करता है। आपके भोगों के भी नाना प्रकार के उपाय हैं। किन्तु जिनके पास आपके समान भोगो की सामग्री नहीं है या कम है उनके लिये आपकी अपेक्षा दुःख भी कम हैं। इसी प्रकार आप सभी जगह देखेगे। आपके मन में जितनी दूर तक उच्च अभिलाषाये रहेगी आपको सुख भी उतना ही अधिक मिलेगा और उसी परिमाण में दुःख भी। एक मानो दूसरे की छाया स्वरूप है। अशुभ कम होता जा रहा है यह बात सत्य हो सकती है, किन्तु उसके साथ ही शुभ भी कम