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पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/१०१

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युद्ध और अहिंसा


इस तरह श्रद्धा के प्रयोगों में बीती है। मुझमें अपनी कोई स्वतन्त्र शक्ति है, यह मैंने कभी माना ही नहीं। निरीश्वरवादी लोगों को इसमें शायद लाचारी और बेबसी की बू आयेगी। अपने आपको शून्य बनाकर ईश्वर सारे-का-सारा आधार रखने को अगर न्यूनता माना जाये, तो मुझे कबूल करना पड़ेगा कि अहिंसा की जड़ में यही न्यूनता भरी है।

'हरिजन-सेवक' : १७ अगस्त, १९४०