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पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/१३२

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यहूदियों का सवाल

 दुनिया के जिन अन्य भागों में वे बसे हुए हैं उनसे उन्हें जबरदस्ती हटा दिया जाय? या वे दुहरा घर चाहते हैं, जहाँ कि वे अपनी इच्छानुसार रह सकें? सच तो यह है कि राष्ट्रीय गृह की इस आवाज से यहूदियों के जर्मनी से निकाले जाने का किसी-न-किसी रूप में ओचित्य ही सिद्ध हो जाता है।

लेकिन जर्मनी में यहूदियों को जिस तरह सताया जा रहा है वह इतिहास में बेजोड़ है। पहले के जालिम इतनी हदतक नहीं गये, जहाँतक कि हिटलर चला गया मालूम पड़ता है। फिर लुत्फ यह है कि वह मजहबी जोश के साथ यह सब पागलपन कर रहा है, क्योंकि वह निरंकुश और उग्र राष्ट्रीयता के एक नये राष्ट्र-धर्म का प्रतिपादन कर रहा है जिसके नाम पर कोई भी निर्दयता इहलोक और परलोक में स्तुत्य बन जाती है! एक ऐसे युवक के अपराध का जोकि स्पष्टतया पागल और दुस्साहसी था ऐसी भयानकता के साथ उसकी सारी जाति से बदला लिया जा रहा है जिस पर विश्वास करना भी मुश्किल है। सच तो यह है कि मानवता के नाम पर और उसके लिए न्यायपूर्वक अगर कभी भी कोई युद्ध किया जा सकता है तो एक जाति का अबाधरूप से सताया जाना रोकने के लिए जर्मनी के साथ युद्ध छेड़ना सर्वथा न्यायसंगत है। लेकिन मैं तो किसी भी युद्ध में विश्वास नहीं करता। इसलिए ऐसे युद्ध के फलाफल पर विचार करना मेरा काम नहीं है।

लेकिन यहूदियों के साथ जो कुछ किया जा रहा है ऐसे