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पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/१८

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हेर हिटलर से अपील

“गत २४ अगस्त को लन्दन से एक बहिन ने मुझे यह तार दिया-‘कृपा करके कुछ कीजिए। दुनिया आपकी रहनुमाई की राह देख रही है।' लन्दन से एक दूसरी बहिन का यह तार आज मुझे मिला-‘मैं आप से अनुरोध करती हूँ कि आपकी पशुबल में न होकर विवेक में जो अचल श्रद्धा है उसे शासकों और प्रजा के सामने अविलम्ब प्रकट करने का विचार करें।’

मैं इस सिर पर मँडरा रहे विश्व-संकट के बारे में कुछ कहने में हिचकिचा रहा था, जिसका कुछ राष्ट्रों के ही नहीं बल्कि सारी मानव-जाति के हित पर असर पड़ेगा। मेरा ऐसा खयाल है कि मेरे शब्दों का उन लोगों पर कोई प्रभाव न पड़ेगा, जिनपर लड़ाई का छिड़ना या शान्ति का कायम रहना निर्भर है। मैं जानता हूँ कि पश्चिम के बहुत-से लोग समझते हैं कि मेरे शब्दों की वहाँ प्रतिष्ठा है। मैं चाहता हूँ कि मैं भी ऐसा समझता। क्युंकि मैं ऐसा नहीं समझता, इसलिए मैं चुपचाप ईश्वर से प्रार्थना करता रहा कि वह हमें युद्ध के संकट से बचाये। लेकिन यह घोषणा करने में मुझे जरा भी हिचकिचाहट नहीं मालूम होती कि मेरा विवेक में विश्वास है। अन्याय के दमन के लिए