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पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/१८१

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१७२ युद्ध श्रीर श्रहिंसा


स्वीकार किया श्रौर इस बात के लिए हमारा श्रहसान माना कि हमने ऐसे मौके पर साम्राज्य की सहायता करने की तैयारी दिखाई।

जिन-जिन लोगों ने श्रपने नाम लिखाये थे, उन्होंने प्रसिद्ध डाक्टर केन्टली की देख-रेख में घायलों की शुश्रूषा करने की प्राथमिक तालीम शुरू की। छः सप्ताह का छोटा-सा शिक्षा-क्रम रक्खा गया था श्रौर इतने समय में घायलों को प्राथमिक सहायता करने की सारी विधियाँ सिखाई दी जाती थीं। हम कोई ८० स्वयंसेवक इस शिक्षा-क्रम में सम्मिलित हुए। छः सप्ताह के बाद परीक्षा ली गई तो उसमें सिर्फ एक ही शख्स फेल हुश्रा। जो लोग पास हो गये उनके लिए सरकार की श्रोर से क्रवायद वगैरा सिखाने का प्रबन्ध हुश्रा। क्रवायद सिखाने का भार कर्नल बैंकर को सौंपा गया श्रौर वह इस टुकड़ी के मुखिया बनाये गये।

इस समय विलायत का दृश्य देखने लायक़ था। युद्ध से लोग घबराते नहीं थे, बल्कि सब उसमें यथाशक्ति मदद करने के लिए जुट पड़े। जिनका शरीर हट्टा-कट्टा था, ऐसे नवयुवक सैनिक शिक्षा ग्रहण करने लगे। परन्तु श्रशक्त, बूढ़े श्रौर स्त्री श्रदि भी खाली हाथ न बैठे रहे। उनके लिए काम तो था ही । वे युद्ध में घायल सैनिकों के लिए कपड़ा इत्यादि सीने-काटने का काम करने लगीं। वहाँ स्त्रियों का ‘लाइसियन' नामक एक क्लब है। उसके सभ्यों ने सैनिक-विभाग के लिए श्रावश्यक कपड़े यथाशक्ति बनाने का ज़िम्मा ले लिया। सरोजनीदेवी भी इसकी सदस्या थीं।