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विकिस्रोत:आज का पाठ/१७ फ़रवरी

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साहित्य की नई प्रवृत्ति प्रेमचंद द्वारा रचित साहित्य का उद्देश्य का एक अंश है जिसका प्रकाशन जुलाई १९५४ ई॰ में इलाहाबाद के हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था।


"जिस तरह संस्कृति के और सभी अंगों में यूरोप हमारा पथ-प्रदर्शक है, उसी तरह साहित्य में भी हम उसी के पद चिन्हों पर चलने के आदी हो गये हैं। यूरोप आजकल नग्नता की ओर जा रहा है। वही नग्नता जो उसके पहनावे में, उसके मनोंरजनों में, उसके रूप प्रदर्शन में नजर आती है, उसके साहित्य में भी व्याप्त हो रही है। वह भूला जा रहा है कि कला संयम और संकेत में है। वही बात जो संकेतों और रहस्यों में आकर कविता बन जाती है, अपने स्पष्ट या नग्न रूप में वीभत्स हो जाती है।..."(पूरा पढ़ें)