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विकिस्रोत:आज का पाठ/१९ नवम्बर

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मिस मेयो के तर्क लाला लाजपत राय द्वारा रचित दुखी भारत का एक अंश है जिसका प्रकाशन प्रयाग के इंडियन प्रेस, लिमिटेड द्वारा १९२८ ई॰ में किया गया।


"मिस मेयो ने अपनी पुस्तक के प्रथम दो भागों में (पहले अध्याय से लेकर दसवें अध्याय तक में) हिन्दुओं के सामाजिक जीवन अर्थात् सामाजिक कुरीतियों का वर्णन किया है। इनमें अधिकांश कुरीति, जहाँ तक उनका अस्तित्व हो सकता है, वास्तव में भारत की सभी जातियों में समान रूप से पाई जाती हैं। पर उसने अपने द्वेषपूर्ण आक्षेपों के लिए केवल हिन्दुओं को ही चुना है। इन अध्यायों में भारत के पुरुषत्व और स्त्रीत्व के विरुद्ध अत्यन्त असावधानी और दुष्टता के साथ विचार किया गया है। कहीं-कहीं तो इन आक्षेपों में सत्य का केवल उतनाही सम्मिश्रण है जो सर्वथा असत्य से भी अधिक हानिकारक हो सकता है। कोई भारतीय, वर्तमान सामाजिक कुरीतियों का उसे कितना ही तीव्र ज्ञान क्यों न हो और उसके हृदय में मूल से सुधार करने की कितनी ही महान लगन क्यों न हो, किसी दशा में भी मिस मेयो द्वारा अङ्कित किये गये चित्र को अत्यन्त खींच-तान और असत्य के अतिरिक्त और कुछ नहीं स्वीकार कर सकता।..."(पूरा पढ़ें)