सामग्री पर जाएँ

विकिस्रोत:आज का पाठ/३ अगस्त

विकिस्रोत से

Download this featured text as an EPUB file. Download this featured text as a RTF file. Download this featured text as a PDF. Download this featured text as a MOBI file. Grab a download!

रक्षा-बंधन विश्वंभरनाथ शर्मा 'कौशिक' द्वारा रचित कहानी है जो १९५९ ई में आगरा के विनोद पुस्तक मन्दिर द्वारा प्रकाशित रक्षा बंधन कहानी संग्रह में संग्रहित है।


"'माँ, मैं भी राखी बाँधूँगी।'
श्रावण की धूम-धाम है। नगरवासी स्त्री-पुरुष बड़े आनन्द तथा उत्साह से श्रावणी का उत्सव मना रहे हैं। बहनें भाइयों के और ब्राह्मण अपने यजमानों के राखियाँ बाँध-बाँध कर चाँदी कर रहे हैं। ऐसे ही समय एक छोटे से घर में दस वर्ष की बालिका ने अपनी माता से कहा—माँ मैं भी राखी बाँधूँगी।
उत्तर में माता ने एक ठन्डी साँस भरी और कहा—किसके बाँधेगी बेटी—आज तेरा भाई होता, तो····।
माता आगे कुछ न कह सकी। उसका गला रुँध गया और नेत्र अश्रुपूर्ण हो गए।
अबोध बालिका ने अठलाकर कहा—तो क्या भइया के ही राखी बाँधी जाती है और किसी के नहीं? भइया नहीं है तो अम्मा, मैं तुम्हारे ही राखी बाँधूँगी।..."(पूरा पढ़ें)