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विकिस्रोत:आज का पाठ/३ अप्रैल

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स्वामिनी प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी-संग्रह मानसरोवर १ का एक अंश है जिसका प्रकाशन अप्रैल १९४७ में बनारस के सरस्वती प्रेस बनारस द्वारा किया गया था।


"शिवदास ने भण्डारे की कुञ्जी अपनी बहू रामप्यारी के सामने फेंककर, अपनी बूढ़ी आँखों में आँसू भरकर कहा-बहू, आज से गिरस्ती की देख-भाल तुम्हारे ऊपर है। मेरा सुख भगवान् से नहीं देखा गया, नहीं तो क्या जवान बेटे को यों छोन लेते! उसका काम करनेवाला तो कोई चाहिए। एक हल तोड़ दूँ तो गुजारा न होगा। मेरे ही कुकरम से भगवान् का यह कोप आया है, और मैं ही अपने माथे पर उसे लूँगा। बिरजू का हल अब मैं ही सँभालूँगा।..."(पूरा पढ़ें)