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विकिस्रोत:आज का पाठ/३ जुलाई

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हिन्दी साहित्य का माध्यमिककाल/नानक अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' द्वारा रचित पुस्तक हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास का एक अंश है। इस पुस्तक का प्रकाशन १९३४ ई॰ में पटना विश्वविद्यालय, पटना द्वारा किया गया था।


"इसी शताब्दी में पंजाब प्रान्त में गुरु नानक देव का आविर्भाव हुआ। आप बेदी खत्री और अपने समय के प्रसिद्ध धर्म-प्रचारक थे। कुछ लोगों ने इनको कबीर साहब से प्रभावित बतलाया है। किसी किसीने तो उनको इनका शिष्यतक लिख दिया है। किन्तु यह सत्य नहीं है। इस विषय में बहुत वाद-विवाद हो चुका है। मैं उनको यहाँ लिखना वाहुल्य-मात्र समझता हूं. किन्तु यह निश्चित बात है कि कबीर साहब का गुरु नानकदेव पर कुछ प्रभाव नहीं था। प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि कबीर साहब पीर थे और गुरु नानकदेव गुरु। वे एक नवीन धर्म का प्रचार करना चाहते थे और ये हिन्दू धर्म के संरक्षण के लिये यत्नवान थे। इस बात को प्रकट करने के लिये ही उन्होंने महात्मा गोरखनाथ के उद्भावित गुरु नाम का अपने नाम के साथ संयोजन किया था। उनके उपरान्त उनकी गद्दी पर दस महापुरुष बैठे वे दसो गुरु कहलाये । पाँच गद्दीके बाद तो इन गुरुओं ने हिन्दूधर्म की रक्षा के लिये तलवार भी ग्रहण की। इन गुरुओं मे से कईने हिन्दुधर्म बलिबेदी पर अपने को उत्सर्ग भी किया।..."(पूरा पढ़ें)