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सत्य के प्रयोग/ 'हिमालय-जैसी भूल'

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सत्य के प्रयोग  (1948) 
द्वारा मोहनदास करमचंद गाँधी, अनुवादक हरिभाऊ उपाध्याय

[ ४९१ ]४३४ आत्म-कथा : भाग ५ ‘हिमालय-जैसी भूल अहमदाबादकी सभाके बाद मैं तुरंत नड़ियाद गया है ‘हिमालय- जैसी भूल' के नामसे जो शब्द-प्रयोग प्रचलित हो गया है, उसका प्रयोग मैंने पहले-पहल नड़ियादमें किया था। अहमदाबादमें ही मुझे अपनी भूल जान पड़ने लगी थी; किंतु नड़ियादमें वहांकी स्थितिका विचार करते हुए खेड़ा जिलेके बहुतसे आदमियोंके गिरफ्तार होनेकी बात सुनते हुए, जिस सभामें मैं इन घटनाओं- पर भाषण कर रहा था, वहींपर मुझे एकाएक खयाल हुआ कि खेड़ा जिलेके तथा ऐसे ही दूसरे लोगोंको सविनय भंग करनेके लिए निमंत्रण देने में मैंने उतावलो करनेकी भूल की थी, और वह भूल मुझे हिमालय-जैसी बड़ी जान पड़ी। मैंने इसे कबूल किया, इसलिए मेरी खूब ही हंसी हुई। तो भी मुझे यह कबूल करनेके लिए पश्चात्ताप नहीं हुआ है। मैंने यह हमेशा माना है कि जब हम दूसरेके गज-बराबर दोषको रज-समान देखें और अपने राई-जैसे जान पड़नेवाले दोषको पर्वत जैसा देखना सीखेंगे तभी हम अपने और दुसरेके दोषोंका ठीक-ठीक हिसाब लगा सकेंगे । मैंने यह भी माना है कि सत्याग्रहीं बनने के इच्छुक- को तो इस सामान्य नियमका पालन बहुत ही सूक्ष्मतासे करना चाहिए ।

  • अब हम यह देखें कि वह हिमालय-जैसी दिखाई पड़नेवाली भूल थी

क्या ? कानूनका सविनय भंग उन्हीं लोगोंसे हो सकता है, जिन्होंने कानूनको विनय-पूर्वक स्वेच्छा से मान लिया हो---उसका पालन किया हो । बहुतांदामें हम कानूनके भंगसे होनेवाली सजाके डरसे उसका पालन करते हैं। इसके अलावा यह बात विशेषकर उन कानूनोंपर लागू पड़ती है, जिनमें नीति-अनीतिका सवाल नहीं होता । कानून हो, या न हो, सज्जन माने जानेवाले लोग एकाएक चोरी नहीं करेंगे; मगर तो भी रातको बाइसिकलकी बत्ती जलानेके नियममेंसे छटक जानेमें भले आदमीको भी क्षोभ नहीं होगा । और ऐसे नियम पालनेकी कोई सलाह भी दे, तो भले लोग भी उसका पालन करनेको झट तैयार नहीं होंगे । किंतु जब कि यह कानून बन जाता है, उसका भंग करनेसे जुमानेका भय रहता है, [ ४९२ ]अंध्यांय ३३ : हिमालय-जैसी भूल' ૪૭૬ तब जुर्माना देनेसे बचनेके लिए ही रातको वह बत्ती जलावेगा । नियमके ऐसे पालनको स्वेच्छासे किया गया पालन नहीं कह सकते । किंतु सत्याग्रही तो समाजके कानूनोंका पालन समझ-बूझकर, स्वेच्छासे और धर्म समझकर करेगा । इस प्रकार जिसने समाजके नियमोंका जानबूझ कर पौलन किया है, उसीमें समाजके नियम, नीति-अनीतिका भेद समझनेकी शक्ति प्राती है, और उसे मर्यादित प्रवस्थाश्रोंमें खास-खास नियमोंके भंग करनेका अधिकार प्राप्त होता है । ऐसा अधिकार प्राप्त करनेसे पहले ही सविनय भंगके लिए न्यौता देनेकी भूल मुझको हिमालय जैसी लर्गी और खेड़ा जिलेमें प्रवेश करते ही मुझे वहांकी लड़ाई याद हो श्राई । मैंने समझ लिया कि मैं रास्ता चूक गया । मुझे ऐसा लगा कि इसके पहले कि लोग सविनय भंग करनेके लायक बने, उन्हें उसका रहस्य खूब समझ लेना चाहिए । जो रोज ही अपने मनसे कानूनको तोड़ते हों, जो छिपाकर अनेकों बार कानूनका भंग करते हों, वे भला एकाएक कैसे सविनयभंगको पहचान सकते हैं ? उसकी मर्यादाका पालन कैसे कर सकते हैं? यह बांत सहज ही समझम श्रा सकती है कि इस श्रादर्शतक हजारोंलाखों प्रादमी नहीं पहुंच सकते, किंतु बात प्रगर ऐसी हो तो सविनय भंग करानेके पहले ऐसे शुद्ध स्वयंसेवकोंका दल पैदा होना चाहिए जो लोगोंको इसका ज्ञान करावें और प्रतिक्षण उन्हें रास्ता बतलाते रहें और ऐसे दलको सविनयभंग और उसकी मर्यादाकी पूरी-पूरी समझ होनी चाहिए । r ऐसे विचारोंको लेकर मै बंबई पहुंचा और सत्याग्रह-सभाके द्वारा मैंने सत्याग्रही स्वयंसेवकोंका एक दल खड़ा किया । उनके जरिये लोगोंको सविनयभंगकी तालीम देना शुरू की और सत्याग्रहका रहस्य बतलानेवाली पत्रिकायें निकालीं । | - - и ، यह काम चला तो सही, मगर मैंने देखा कि इंसमें मैं लोगोंकी बहुत दिलचस्पी नहीं पैदा कर सका ।। ०कभी काफी स्वयंसेवक न हुए । यह नहीं कहा जा सकता कि जो भरती हुए उन सभीने नियमित तालीम भी पूरी कर ली हो । भरतीम नाम लिखानेवाले भी, जैसे-जैसे दिन जाने लगे, दृढ़ होनेके बदले खिसकने लग । मैंने समझ लिया कि सविनयभंगकी गाड़ीके जिस चालसे चलनेकी में श्राशा रखता था, वह उससे कहीं धीमी चलेगी । । r

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