सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मारहवां समस्या बारपान - संजयने कहा- इस प्रकार वासुदेव और महात्मा अर्जुनका यह रोमांचित करनेवाला संवाद मैंने सुना । व्यासप्रसादाच्छृतवानेतद्गुह्यमहं परम्। योगं योगेश्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयतः स्वयम् ॥७॥ व्यासजीकी कृपासे योगेश्वर श्रीकृष्णके श्रीमुख मैंने यह गुह्य परम योग सुना । ७ राजन्संस्मत्य संस्मृत्य संवादमिममद्भुतम् । केशवार्जुनयोः पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहुः ॥७६॥ हे राजन् ! केशव और अर्जुनके इस अद्भुत और पवित्र संवादका स्मरण कर-करके, मैं बारंबार आनंदित होता हूं। तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुत हरेः । विस्मयो मे महान् राजन्हृष्यामि च पुनःपुनः ॥७७॥ हे राजन् ! हरिके उस अद्भुत रूपका खूब स्मरण कर-करके मैं बहुत विस्मित होता हूं और बारंबार आनंदित होता रहता हूं। यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः । तत्र श्रीविजयो भूतिधुंवा नोतिर्मतिर्मम ||७८॥ जहां योगेश्वर कृष्ण हैं, जहां धनुर्धारी पार्थ 09