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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२४२

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है, वहां श्री है, विजय है, वैभव है और अविचल नीति है, ऐसा मेरा अभिप्राय है। ७८ टिपरी-योगेश्वर कृष्णसे तात्पर्य है अनुभव- सिद्ध शुद्ध ज्ञान और धनुर्धारी अर्जुनसे अभिप्राय है तदनुसारिणी किया, इन दोनोंका संगम जहां हो, संजयने जो कहा है उसके सिवा दूसरा क्या परि- म हो सकता है ? ॐ तत्सत् इति श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद अर्थात् ब्रह्म- विद्यांतर्गत योगशास्त्रके श्रीकृष्णार्जुनसंवादका 'संन्यास- योग' नामक अठारहवां अध्याय । ॐ शांतिः