हमारा कर्तव्य "नाजी जर्मनी द्वारा निाये जानेवाले एवरके और भी कूरतापूर्ण हमलोका ख्याल रखते हुए ओर इस वावग्याको आँखोके सामने रम्यते हुए कि ब्रिटेन जाज' मुसीबत में पड़ गया हे गोर चारो ओर आपदागोरो घिरा हुआ है ,क्या हिसाझा यह तकाजा नहीं है कि हम उससे कहा कि यद्यपि हम अपनी सिनिमजरा भी नहीं हट रहे है ओर जहा तक उसके साथ हमारे माल्रकार मोर हमारे भविष्यका सम्बन्ध है, हम अपनी माग तिलभर कभी न करेगे, फिर भी मुगीगतोस घिरे होने की हालसमे उसे तंग या व्यग्न पारनेकी हगारी इच्छा नहीं है, इसलिए फिलहाल सत्या- ग्रह आन्दोलनके विषय में सारे ख्यालात और सब तरहकी बाते हम निश्चितरूपसे मुणतकी पार देते है। आज नाजीवाद रगष्टत. जैसे प्रभुत्वके लिए उठ रहा है, क्या हमारा मन उसकी कल्पनाके खिलाफ विद्रोह नही करता है ? क्या मानवीय सभ्यताका सम्पूर्ण भविष्य खतरेमें नही है ? यह ठीक है कि विपेनी शासनसे अपनेको स्वतंत्र करना भी हमारे लिए जिन्दगी और मौत काही सवाल है । लेकिन जब ब्रिटेन एफ ऐसे आक्रमणकारीके मुकाबले खड़ा है, जो निश्चितस्परो जंगली उपायों का इस्तेमासकर रहा है, तब नया हमें ऐसी समयोचित और मानवीय भाव संगी न ग्रहण करनी चाहिए जो अंत में हमारे विरोधी दिलको जीत ? फिर अगर इसका उसगर कुछ असर न हो और इज्जत आबरूके साथ कोई संगीता नामुमकिन ही बना रहे, तो भी पया हमारे लिए यह एक ज्यादा ऊँची और श्रेष्ठ बात न होगी कि हम अहिंसात्मक युद्ध तम छेड़ें जब व (भिटेन) भाजकी तरह चारों तरफरो मुसीबतोंसे घिरा न हो ? क्या इसके लिए हमे अपने अन्दर और ज्यादा ताकतकी जरूरत न पड़ेगी? और चूंकि ज्यादा ताकतकी जरूरत पड़ेगी, इसलिए गया इसका अर्थ अधिक और ज्यादा टिका लाग नहीं होगा और क्या यह आपसमें सिर फोड़ने वाली दुनियाके लिए एक ऊचा उदाहरण न होगा? क्या यह इस बातका भी प्रमाण नहीं होगा यिा अहिंसा प्रधानतथा बलवानोंका शस्न है ?" नाक पतनके बाद कई पत्र लेखकोंक जो पन मुझे प्राप्त ए है उनकी भावना इस पत्र में कदाचित ठीक ठीक जाहिर हुई है। यह इन पत्र-लेखकों के दिलोंको शराफतका सबूत है। पर इसमें वस्तुस्थितिके प्रति ठीक समझफा अभाव है। इन पत्रों में मिटिश प्रकृतिका ख्याल नहीं किया गया है। विदिशा जातिको गुलाम जातिको हमबीको कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि वह इस गुलाम जातिसे जो कुछ चाहे ले सकती है। वह वीर और स्वाभिमान जाति है। नार्वे जैसी एक नहीं अनेक विघ्न बाधामोंसे भी वह लोग पस्त-हिम्मत होनेवाली नहीं है। अपने आगे जानेवाली किसी भी विकासका सामना करनेमें वे भली भोलि समर्थ है। युद्ध में भारतको किस तरह क्या हिस्सा लेना है इस बारे में उसको खुब कुछ कहने का हक नहीं है। उसे तो ब्रिटिश मंत्रिमंडल की इच्छामानसे इस युद्ध में अपनेको घसीटना पड़ा है। उसके सायनोंका मिडिया मंत्रिमंडलकी इच्छानुसार इस्तेमाल किया जा रहा है। हम शिकायत नहीं कर सकते । हिन्दुस्तान एक पराधीन देश है और मिटेन इस पराधीन वेशको उसी तरह बुहता ३२४.
पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/१०३
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