गांधीजी ओर वफादारी के साथ खादी-कार्यक्रमको अपनाना चाहिए । मुझे इसकी आवश्यकता स्फटिवकी गांति स्पष्ट दिखायी दे रही है । आप बिलकुल ठीक कहते हैं । "पर मामले के इस पाको छोड़ दें,तो भी में देख रहा हूँ कि जब वर्तमान युद्ध खत्म हो जायगा तो सारे यूरोपको आपके खादी कार्यक्रमकी और विना किताबोंके तरह-तरहकी दस्तकारियोंके जरिये शिक्षा देनेकी आपकी योजनाकी जरूरत पड़ेगी। इंगलैंड और यूरोपका मध्यवर्ग बहुत दरिद्र हो जायगा । यही बात संयुक्त राज्य अमेरिका पर भी,संभवतः यूरोम जैसी प्रबलताके साथ ही, घटित होगी; नयोंकि हमारे यहाँ भी तो आर्थिक दृष्टिसे १९१९से १९३४ तमा बसी ही गहान अधोगति आ चुकी है जैसी कि यूरोपके किसी भी देशर्गे आयी थी । हिन्दुस्तान के खादी आन्दो- लनने जो अनुभव और यांत्रिक अभिज्ञता प्राप्त की है वह युद्धके बादके वर्षों में अत्यन्रा मूल्यवान सिद्ध होगी। "शुद्ध और उसकी सम्पूर्ण भयानकताओंके बावभूद, मैं अहिंसाके भविष्य के विषय में आशासे पूर्ण हूँ। दुनियायो सारे इतिहासमें इससे पहले कभी अहिंसामें श्रद्धा रखनेवाले इतने आदमी नहीं हुए ; मैं कुल तादाद और शेष जन-संख्याके अनुपात दोनों ही दृष्टियोंसे यह बात कह रहा हूँ। इसके पहले और कभी समयों, श्रेणियों, धर्मों और पेशों में यह विश्वास पाया नहीं गया था । इसके पहले कभी इतने प्रतिष्ठित राजनीतिज्ञोंने सच्चाई और स्पष्टताफे साथ खुलेआम युद्ध और हिंसाकी गलती, निस्सारता और भयंकर परिणामोंका इजहार नहीं किया था। इसके पहले कभी इतने फौजी भादमी अपने सरोकेकी अंतिम प्रभावकारिती और उचितताके विषयमें इस कदर अनिश्चित नहीं थे। "तमाम पिछले दो सालोंमें, और जबसे लड़ाई शुरू हुई तबसे तो बड़ी तेजीफे साथ ब्रिटेन और अमेरिकाके संगठित शान्ति-आन्दोलनोंमें प्रगति हुई है। इसके पहले पाभी उनका इतना विस्तार नहीं था। फिर यह केवल भावना नहीं है । समस्याके सम्पूर्ण पक्षों के विषयमें काफी तेज और गहरा विचार लोग कर रहे हैं। "ग्रेट ब्रिटेनमें लाजिमी सैनिक भर्तीका कानून जिनपर लागू होता था उनमें नौ मार्च तया २६,६८१ आदमी सरकारी तौर पर अन्तःकरणसे युद्धपर आपत्ति करनेवालोंकी सूचीमें लिखे जा चुके हैं, जब कि १९१४-१८के युद्ध के सम्पूर्ण ४ वर्षों में केवल १६,००० ऐसे आदमी निकले थे। हालांकि पहलेसे कोई बात निस्चितरूपमें नहीं कही जा सकती, फिर भी जो प्रमाण सामने है उनसे मालूम पड़ता है कि अगर संयुक्त राज्य भी युद्धमें घसीटा गया तो यहाँ भी युद्धके प्रति हार्दिक आपत्ति उठानेवालोंको संख्यामें इसी प्रकार बहुत बड़ी वृद्धि होगी। पिछले साल जूनसे इस साल के मार्च महीने तक सेट निदेनमें लाजिमी सैनिक भर्ती के लिए जो ५ या ६ माँगें हुई उनमें हार्दिक आपत्ति करनेवालोंकी तादाद १.६ सैकड़ा से लेकर २.२ सैकड़ा तक थी। अगर आप ख्याल थारे किस भी देशों में सचमुष प्रभावशाली या मुख्यसरकारी कामजनसंख्या के दो प्रतिशत ज्यादा आदमी नहीं करते, तो यह एक दिलचस्प तुलना होगी। फिर जब हम निटेनके शान्ति-आन्दोलनके नेताओंकी उच्च बौद्धिक मावापर ध्यान देते हैं तो इस तुलनाका बल और भी बढ़ जाता है। और यद्यपि किसीको अपने देशके बारेमें शेखी न भारनी चाहिए, फिर भी
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