अहिंसा मैं कह सकता हूँ कि इस 'देशमें शांतिवादी' मूर्ख नहीं है । भले उनकी कोति जगतव्यापी न हो । भविष्यके साथ इन तथ्योंका सम्बन्ध ऐतिहासिक सादृश्यमें निहित है । "१९१४-१८के युद्धके बाद बहुतेरे शांतिवादी जो युद्ध के समय बुरी तरह दंडित हुए थे, प्रतिष्ठित नेता बन गये। इसी बातके होनेकी फिर संभावना है । "युद्ध के बाद उसमें शरीक होनेवाले सभी राष्ट्रों तथा बहुतेरे तटस्थ राष्ट्रोमें भी एक जोर- दार शान्ति-आन्दोलन उठ खड़ा हुआ था। संभवतः फिर यह बात होगी। पिछली बारके आन्दोलनका अधिकांश केवल भावना-मूलक था। इसलिए जब कड़ी कसौटीपर उसकी परख की गयी, तो वह भंग हो गया । लेकिन तबसे बहुत अधिक मात्रामें और गहरा विचार इस दिशामें किया गया है और अब अहिंसा विश्वास रखनेवाले लोग पहलेकी अपेक्षा कहीं अधिक स्पष्टता के साथ समस्याओं और अपनी कठिनाइयों और उन्हें हल करने के संभव मार्गको समझने लगे हैं। भविष्य में पहले की अपेक्षा वे काही ज्यादा असर डाल सकेंगे। इस लड़ाई के बाद घृगा और शंका शायद उससे ज्यादा गहरी और प्रबल होगी, जितनी कि पिछले महायुद्ध के बाद हुई थी। लेकिन साथ ही ज्यादा इमानदारी-अपने राष्ट्रकी पिछली भूलों और दोपोंको स्वीकार करनेकी ज्यादा तैयारी दिखायी पड़ेगी। पुरानी आदतोंको छोड़ कर नये तरीकोंका प्रयोग करनेकी प्रवृत्ति भी अधिक होगी। सामूहिक जागरूकताकी वृद्धि के कारण अनन्त संघर्ष के खतरोंके प्रति भी अधिक जानकारी होगी। कवाचित विप्लय और व्यवस्थाके बीच चुनावकी बहुत थोड़ी गुंजाइश हो, पर मैं यही विश्वास करना चाहता हूँ कि स्थानी व्यवस्थाके लिए मनुष्यकी जो आकांक्षा है वह उसके भय और धूणारो कुछ ज्यादा ही शक्ति- माग निकलेगी। यह कुछ ऐसा होगा जैसे किसी पागलखानेो सब अधिवासी पारस्परिक हिंसाके एक भयंकर विस्फोटके बाद,सुलह कर लेने का निश्चय करें और अपने रोगको चिकित्साके लिए एक सहकारी योजना बनालें। "अगर यह सच है कि मनुष्यकी व्यवस्था और अपने जीवन के महत्वकी आकांक्षा भय और घृणासे बलवान है ,तो एकमात्र जिस कार्यक्रमसे व्यवस्था और जीवन के महत्वकी स्थापना हो सकती है उसका मेरुदण्ड अहिंसा ही होगी। इसके कारण अहिंसामें जो लोग विश्वास रखते हैं उनके ऊपर एक बड़ी जिम्मेवारी आ जाती है। यह (अहिंसा) उनसे महान् विचार, अनुशासन और सामाजिक आविष्कारकी आशा रखती है ।आपके खादी कार्यक्रमको मैं इनमें से एक महान सामा- जिक आविष्कार मानता हुँ । वर्षा-शिक्षा योजना ऐसा दूसरा आविष्कार है। "एक पत्रमें श्री जे० सी० कुमारप्पाको कुछ ऐसी बातोंके बारेमें लिख रहा हूँ, जिनपर अर्मेसे उनके साथ चर्चा करनेकी मेरी इच्छा रही है। इसमें चंद सुझाव हैं जिनके विषयम अ०भा० ग्रामोद्योग संघ प्रयोग कर सकता है। इनमें एक सुझाव तो यह है कि नेप्थलीनकी कृमिनाशक गोलियों से भरी हुई मसहरीकी जालीकी छोटी-छोटी थैलियाँ माँवों के कुओंमें लटकायी जायें । ये थैलिमा पानीको सतहसे गज भर या उससे ज्मावा ऊपर रहें। इन गोलियोंकी गन्धको मच्छर बहुत नापसन्द करते है और चूंकि यह गन्धहीन वायुसे कुछ भारी होता है इसलिए पानीके .
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