अहिंसा ब्रिटेन और हिन्दुस्तानकी परिस्थितिमे कोई साम्य ही नहीं है। इसलिये, मुझे वह निवेदन लिखनेपर जरा भी पश्चाताप नहीं है । मैं इस बातपर कायम हूँ कि निवेदन लिखने में मैने बिटेनके एक आजीवन मिनका काम किया है। एक लेखक प्रत्युत्तरमे लिखते है:--"हर हिटलरको अपना निवेदन भेजो न !" पहली बात तो यह है कि मेने हेर हिटलरको भी लिखा था। मेरे पत्र भेजनेके कुछ समय बाद बह पत्र कुछ अखबारोंमे छपा भी था। दूसरी बात यह है कि हेर हिटलरको मेरा अहिंसक रास्ता अख्तियार करनेके लिए कहना कुछ अर्थ नहीं रखता। हेर हिटलर विजयपर विजय प्राप्त कर रहे हैं। उनसे तो मैं यही कह सकता हूं कि अब बस करो। वह मैं कह चुका हूँ। मगर ब्रिटेन आज अपनी रक्षाके लिए लड़ रहा है। उसके आगे मै अहिंसक असहयोगका सचमुच प्रभावकारी शस्त्र रख सकता हूँ। मेरा रास्ता कराना हो तो उसके गुण-दोषोंका विचार करके ठुकराया जाय, अनुचित तुलनाएं करके या लूली-लंगड़ी दलीलें पेश करके नहीं। मैं समझता हूँ कि मैने जो सवाल उठाया है वह सारे संसारके लिए महत्व रखता है। अहि- सक रास्तेकी उपयोगिताको सब आलोचक स्वीकार करते है। मगर वह खामसाह मान लेते है कि मनुष्य स्वभाव ऐसा बना है कि वह अहिंसक तैयारीका बोझ नहीं उठायेगा। लेकिन यह तो प्रश्नको टालनेकी बात है। मैं कहता हूँ कि आपने यह तरीका अच्छी तरह आजमाया ही नहीं है। जहां तक यह आजमाया गया है परिणाम आगाजनक ही आया है। हरिजन-सेवक २७ जुलाई, १९४० पाकिस्तान और अहिंसा प्रश्न---एक गुजराती मुसलमान भाई लिखते है--- "मे हिसाको हूँ गानता हूँ और पाकिस्तानको भी मानता हूँ । अब पाकिस्तान के लिए अहिपक रीतिसे किस तरह काम को ?" उत्तर--जिस वस्तुमें न्याय नहीं है वह अहिंसक रीतिसे प्राप्त नहीं की जा सकती जैसे चोरी अहिंसक रीतिसे नहीं की जा सकती। जिस तरह पाकिस्तानको में समक्षा हूँ, उस तरहसे वह न्याययुक्त नहीं है। मगर आप उसे न्याययुक्त मानते है, इसलिये भाप उसके लिए आन्दोलन जरूर कर सकते हैं। यदि आप यह अहिसक रीतिसे करेंगे, तो पहले जो पाकिस्तानका विरोध करते है, उन्हें आपको समझाना चाहिये। आप इस बारेमें निःस्वार्थ भावसे काम करते है, ऐसी छाप लोगोंपर पड़नी चाहिए । विरो- थियों का कहना भादरपूर्वक सुखना चाहिये और उनकी भूल हो तो आवरपूर्वक बतानी ३४३ ।
पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/१२२
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