गांधीजी चाहिये। अन्तमें मान लीजिये कि लोग आपकी नहीं सुनते और आपके इस मामलेकी सचाईके बारेमें आपकी मान्यता कायम रहती है, तो जो लोग आपके रास्ते विघ्न डालते है, उनके खिलाफ आप अहिंसक असहयोगका प्रयोग कर सकते हैं। ऐसा करते हुए आप विरोधीको नुकसान नहीं पहुंचायेंगे, नुकसान पहुँचानेकी इच्छा नहीं करेंगे और आपको नुकसान होता हो तो उसे आप सहन कर लेंगे। आपका मामला तटस्थ जब रीतिसे उचित माना जाता होगा, तभी यह सम संभव होगा । हरिजन-सेवक ३, अगस्त १९४० इसमें हिंसा है ऐसा श्री सुरेन्द्रजी बोरोयाबसे लिखते है-- 'दुःखी इसलिए कि इतने वर्षों से जिनको मैने अपना कथन समझता रहा, जिन्हें साथ लेकर चलनेका गौरवपूर्ण लाभ मुझे प्राप्त हुआ, उन्हें समझा सकनेकी शक्ति आज मेरे शब्योंमें गोया नहीं रही, और इतने वर्षों का प्रेम-भरा सम्बन्ध मानों कलकी बात हो गयी है'यह पाक्य आपके लेखमें पढ़कर मुझे दुःख ओर आश्चर्य हुआ। मापके इस वाक्यमें क्या हिंसा नहीं है." मेरी कलमसे ऐशा वाक्य निकल ही नहीं सकता, यह मैने मान लिया और इस प्रकारका उत्तर भी वे दिया, क्योंकि इस तरह विचार तक रखने में हिंसा है । सरवारके साथ तो पया, किसोके भी साथ मेरी प्रेमको गाँठ नहीं टूट सकती। दुश्मनके प्रति भी प्रेम विकसित करनेकी शिक्षा देनेवाला मैं सरवार-जैसे साथियों के साथ बँधी प्रेम-गाँधको भला कैसे तोड़ सकता हूँ? मालवीयजी, शास्त्रीजी जैसोंके साथ मेर मतभेद तो रहा ही है, तो भी उनके साथ मेरा प्रेम-संबन्ध जैसा था वैसा ही चलता आ रहा है। मतभेव होनेपर यदि प्रेम सम्बन्ध टूट जाय टो बह असहिष्णुताकी निशानी है। इसलिए सुरेन्द्रजीका पत्र पढ़कर मैंने "हरिजन-धन्धु" पड़ा । मैंने देखा कि मेरे 'हरिजन' के लेक्षका यह तर्जुमा है। असल लेख पढ़ा तो देखा कि मेरा वचन तो सर्वथा निर्दोष और अवसरके अनुसार है । "यह सब वर्षोंक्षा प्रेम-संबन्ध मातो कलकी मातr हो गई," ऐसा अर्थ अंग्रेजीमें है ही नहीं। अंग्रेजीका अर्थ तोइतना ही है कि “यह सब वर्ष सामों कस-के-से हो गये।" उसके ऊपर ही कहा जा चुका है कि बीस वर्षसे भी कापरकी हमारी मैत्रीमें कुछ फर्क नहीं पड़ा।" इसलिए भगो दुख संबन्ध टूटनेका नहीं, बल्कि 1" मेरे भावों में जो शक्ति कलसका थी, वह एकाएक चली गयी उसका था, और है। प्रेम है, मगर साथियोंको फिरसे खोल राकनेकी शक्ति अपने राज्यों में प्राप्त करने के लिए मुझे अपवर्मा
पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/१२३
दिखावट