गांधीजी व्यापो अहिवाका हामो हूँ,सेरा प्रयोग हिन्दुस्तान तक ही सीमित हैँ। यहाँ उसे सफलता मिली, तो संसार बिना किसी प्रयत्नके उसे स्थीकार कर लेगा । मगर इसमें एफ बड़ा लिफिन' भौजूद है । विध्नोंकीमुझे चिक्ता नहीं। घोर अर्धकारणें' भी मेरा! विश्यास बड़ा उध्डबल है । हरिजन सेवक ह १६ फरवरी, १९३९
४ यहाँ7 क्या अहिंसा नहीं| हैहै ? अज्लामलाई यूनिवर्सिटीके एक शिक्षकका पन्न सुभे मिला है,जिरामें वह लिखते है।--“गत नवम्बरकी बात है ,पाँच या छ. विद्यायियोंकेएक समूहते संगठित रूपसे गूनिवर्सिदी-
यूनियनके सेक्रेटरी--अपने ही साथी एक विद्यार्थीपर हमझछा किया । यूविव्सिटीके व/इरा-
चांसलर श्री श्रीविवास दास्त्रीने इरापर सख्त ऐवराज किया और उरा समूहके नेताकों यूनिव" सिंटीसे निकाल दिया तथा बाकीको यूनिवर्सिटी केइसतालीमी रालके अन्ततक पढ़ाईमें शामिल ने करनेकी संजा दी ।
“सजा पानेवाले इन विद्यार्थियोंसे सहानभूति रखनेतब।ले इनके कुछ मित्तोंने इसपर पछासोंसे गैरहाजिर रहकर हदताल करनी चाही । दूसरे दिन उन्होंने अन्य विद्याथियोसे सझाह
की और उन्हें भी इसके विरोध-स्वरूप हड़ताऊू करनेके लिए सभझाया-बुझाया। केकित इसमें उन्हें सफलता वहीं मिली क्योंकि विद्याथियोंके बहुमतकों छगा कि छः: विद्याथियोंकों जो सजा दी गयी है,वह ठीक ही है ओर इसचिए उन्होंने हड़तालियोंका साथ देने था उगके प्रति फिसी तरह की हमदर्दी जाहिर करनेसे इन्कार फर दिया।
“इसलिए पूसरे दिन कोई २० फीसदी विद्यार्थी पढ़ते चहीं आगे, बाकी 'हस्बमामूल हाजिर रहे।
करीब विद्यार्थी हूं।
८० फीसदी
यहाँ यह वता देना ठीक होगा कि इस यूनिवर्सिदीमें कुछ ८०० के
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“अब यह निकला हुआ विद्यार्थी होस्टलमें आया और हड़तालका संचाकन करने छगा। हंड़तालकों नाकामयाब होते दल्ल, शामके बकत उसने दूसरे राधनोंका सहारा छिया। जैसे, उदाहरणके लिए, हीस्टलके चार प्रमुख रास्तीपर लेट जाना , होस्टलके कुछ दरवाजोंकों बन्द कर
देना; और कुछ छोटे छड़कोंको खासकर मित्रक्े दर्जेके बंच्चोंको जिनको की अपनी बात मानने के शरद;