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पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/३६

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अहिंसा

लिये दशाया-धर्मकाया जा सकता है, उनके वामरोंगें बन्द क* देवा, आदि । इससे तीररे पहर कोई पतारा-साठ व्यतित बाकी विद्याशियोकी होटठगे बाहर थानेसे रोकने सफर हो गये। “अधिकारियोने इस तरह दरवाजे बन्द देखकर

फेनरिंग' को खोलना चाहा। जब

यूनिवर्सिदीके नीकरोकी मददसे वे फेनसिगको हटाने लगे, तो हड़तालियोंने उरासे बने हुये रास्तो पर परुँचका' दूसरोंको इभरसें उधर कालेज जानेसे रोका। अधिकारि्योने धरना देगेवाछोको पकएक'र हटाना चाहा, लेकिन वेकामयाब न हो सके। तब परिरिथतिको अपने काबूसे बाहर

पाकर उस्होंने इस गठगड़की जड़ उस निकाछे हुये विद्यार्थीको होरटलकी हदसे हटागेकी पुलिससे प्रार्थना वी, जिसपर पुछिसगे उसे वहाँगे हटा दिया। इसपर स्तश[वत्तः कुछ ओर भी विद्यार्थी खीझ उठे ओर ह॒ड़तालियोंके प्रति सहायभूतिदिखाने छगे। अगले दिन हड्तालियोंके होस्टलकी

सारी 'फेनसिंग” हटायी' हुई ५िली तब वे कालेजकी हदसें घुस गये ओर पढाईके कमरोमे जानेवाले

रास्तोंपर छेटकर धरना देगे छगे। तब श्री श्रीनियास जास्त्रीने डेड भहीनेंकी छूम्बी छुट्टी करके २५९ गवग्बरसे १६ जनवरीतक यूतिव सिटीको बन्द कर दिया । “अखबारोंको उन्होंने एक ववतव्य देकर विद्याथियोरें अपील की फिवे छुट्वीके बाद घरगे शिष्ट और सुखद भावनाओंकेसाभ्र पढ़नेकेलिये आये।

लेकिन कालछेजके फिरसे खुलनेपर इन विद्याथियोंकी हलचछ और भी तेंज हो गयी, वषोंकि छुट्वीमें इन्हें... .. . « « से और सलाह मिल गयी थ्री। मालूम पड़ता हैकि वे राजाजीके शी पास गये थे , छेकित उन्होंते हरतक्षेतर फरनेरों इन्कार कर वाइस चांसलश्का हुक्म मनानेके लिये कहा। उन्होंने वाइरा चांसलरकी मार्फत हृडतालियोंकों दो तार भी दिये ,जिनमें उनसे हड़-

ताल बन्द करके शान्तिके साथ पढ़ाई शुरू कर देसेकी प्रार्थना की । “अच्छे विद्याथियोके राषभान्य बहुमतपर, हाछां क्रि इस तारोंका अच्छा धसर पढ़ा, मगर हतालिये अपनी बातपर अष्छे रहे। धरना देना अत्र भी जारी है। यह तो छभभग मामूली ही गया है,और लगभग पचास सहामुभूति रखनेयाले ऐसे है जो सागने आकर हड़ताल करतेका शाह तो नहीं रखते पर अन्दर ही भन्वर गड़बड़ मयाते रहते है ।

“बे रोज इकदूठे होकर आते और वलाशीके दरवाजेपर पहली म॑जिलकी वलासोंपर जाने बाके जीनेपर छेट जाते ,और इस तरह विद्यायियोंकों क्लासोंगें जानेसे रोकते हैं। छेकिन शिक्षकदूसरी ऐसी जगह जाकर पढ़ाई शुरू कर देते हैंकि धरता देनेवाले उनसे पहले नहीं पहुंच पातें। , नतीजा यह होता हैँकि हर घंदे पढ़ाईका स्थान यहांरो वहां

, कभी-कभी ती है और बेदकनपड़ता ा

खुली जगहम पढ़ाना पड़ता है ,जहाँ कि धरना देतेवाले लेद नहीं ग़कते। ऐसे अवसरोंपर वेशोर- ,

गूंछ मचाकर' पढ़ाईमें ्रिष्त डालते है और , कभी-कभी अपने शिक्षयोका वध्याज्यान श्रुतते हुये विद्यायियोंकोीं परेक्षात कर डाढ़ते हैं। "कल एक नयी बात हुईं। हृड्तालियें परातोंके अच्देर घुस आये और लेदकर चिल्लाने ्ु

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