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पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/५४

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आंदसा

बस्तंदाजीकी उन्हें जरूरत नहीं । कितने ही राज्योंमे तो कॉमग्रेंसका ताम लेना भी अप्रिय हो गया है । ऐसा होना नहीं चाहिए था । इस अनुसन्धानका सुझ्पर जो असर हुआ वह बड़े महत्वका है। इसमें भावी सत्याप्रहियोंके प्रति मे अपनी अपेक्षाओं और भार्गोस्ें सख्त बन गया हूँ । इसफे परिणासस्वरूप मेरी संस्था घठकर बिलकुल नगण्य हो जाय, तो मुझको उसकी चिन्ता नहीं होमो चाहिए । यदि सत्याग्रह

एक ऐसा व्यापक सिद्धान्त है, जोसभी परिस्थितियोंमे लागू होसकता है, तो मुदठीभर साथियोंके जरिये लड़ाई लड़नेका फोई अचूक तरीका मुझे जरूर खोज लेना चाहिए। और

भे जो नये प्रकाशकी धृंधली सी भलक देखनेकी बात करता हैँ. इसका अर्थ यही है कि मुझे रात्यका दशेन होते हुए भी अभी कोई ऐसी विश्वसनीय फार्य-पद्धति महीं सिलली कि ऐसे मुठ्ठी-

भर आपगी किस तरह प्रभावकारी अहिसक लड़ाई लड़ सकते है । जैसा कि सेरे सारे जीवनमें होता आया है, संभव है कि पहला कदस उठानेके बाव ही अगला कदम सुझे । सेरी आत्मा मुझसे फहुती है कि जब ऐसा कदम उठानेका सम्रण आयेगा, तब योजना तो उसकी सामने

आ ही जायगी । मगर अधीर आलोचक कहेगा, समय तो प्रस्तुत ही है,आप ही तंघार नहीं हो रहे

हैँ! इस आरोपको मेंनहीं मानता । मेरा अनुभव इससे उलठा है। कुछ वर्षोसे से यह कहेजा भा रहा हूँकि सत्याग्रह फिरसे छुरू करनेका अभी मौका नहीं। क्‍यों ? कारण स्पष्ट है । राष्ट्रध्यापी सत्याप्रह जारी करमेका अचूक जरिया बनने जैसी काँग्रेस आज नहीं रही हू ।

उसका कलेवर भारी हो गया है । उसमें सहन या गन्दगी आ गयी है । कॉमग्रेसनावियोंमें जाज अनुशासन नहीं । नये-सये प्रतिस्पर्धी समुवाय खड़े हो गये है, जो, अगर उत्तकी चले और उन्हें बहुमत प्राप्त हो जाग तो, कॉग्रेसके कार्यक्रममें जड़मुलका परिवर्तन कर वें । ऐसा बहुमत वे प्राप्त नहीं कर सके, यह चीज से कुछ आाधवासतन देनेवाली नहीं । जिनका बहुमत है उनको भी अपने कार्यकमर्गं जीवित श्रद्धा नहीं है। किसी भी दृष्टिसे महज बहुमतके बलपर सत्याभ्रहु शुरु करना व्यावहारिक कार्य तहीं। वेद्ाव्यापी सत्याग्रहुके पीछे लो सारी कॉग्रेसकी ताकत होनी चाहिए ।

अलावा इसके, साँप्रदाषिक तनातनों है, जो रोज-ब्र-रोज बढ़ती जा रही है । जिन विभिज्ने जातियोंसे मिलकर राष्ट्र बना हैँउसके बीच सस्मात्पुर्णं सुलहु और एकताके बगैर

आखिरी सत्याग्रहुकी ऊड़ाईकी कहपना नासुसकित है।

अस्त प्राप्तीय त्वायसत शासनको छैता हैं । सेरा जब भी यह विदवाल हैकि इस विश्ञासे

काँग्रेसरे जिस कासकों अपने सरपर लिया हुँउसके साथ हुसने उचित स्याय तहीं किया हैँ। यह भी स्त्रीकार फरना चाहिए कि गवर्नरोंने मिलकर संभियोक्ति कालरमें बहुत कम दखल

दिया हे । पर दस्तंवाजी-क्ी-कभी तो सीज पैधा करनेवाली दस्तंदाजी--कॉार्रेसबादियों और कांग्रेस मंत्रिभण्डलोंके तरफंसे हुई हैं ।जब तक कॉँप्रेती कारोबार चला रहेहैं,तबतक लोफपक्षीय २७५