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पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/६०

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अहिंता

हैड़प जाती है, छोगोंकों पीस रही हैऔर उनकी आककाक्षाओंको कुचल रही है, उसकी गैरजिशोदारी अब भिग-ब-दित असह्या होती जा रही है । अधिकाँश शियासतोंमें भी भीषण निरंकुशताकी भाषना थढ़ रही है। में इस जिस्मे-

दाशीको स्वीकार करता हूँ कि मेंने कुछ रिथाततोंमें सजिनय-भंय आस्वोलनकों स्थगित करा दिया हुँ ।इसका परिणाम हुआ हैप्रजा और राजा--दोबोंका नैतिक पतन । लोग तो पस्तछिम्मत ही गये हें, और सोचने छगे हैं कि सब कुछ चता गया है । राजाओंका पतन

सतफे इत (वदारसें है कि अब प्रजासे उरसेकी कोई जरूरत नहीं । जले फोई असली अधि-' फार देमेगी जरुरत पहीं। दोनों गलतीपर हैं। इस परिणाभसे में मिराश नहीं हुआ । बर-

असल, मेने इन परिणामोंली पेशीभगोई पहुले ही फर छी थी, जब म॑ जयपुरके फार्यकर्ताओंके साथ इत सलाहुपए जिबार कर रहा था, कि वे सत्याग्रह आस्योलन रथगित कर के, भरे ही बहू शत्याप्रह मिगरमों और गिमंत्रणोंगें रहकर चलाया जा रहा था। प्रणामें सैतिक पतन तो थहू बताता है कि उनके पिचार तथा वाभीें अहिसा नहीं थी। और जब जेल जाने

और भारी प्रवशेनोंका जोश और नशा खत्म हुआ, ऊोगोंने यह समझा कि लड़ाई लत्म हो गयी । राजाओंगे भी एक्स यह परिणाम निकाऊ लिया कि सत्याग्रहियोंके विंगद्ध कठोर

बर्ताव घरतकार और भोलेभाले लोगोंको विलाऊ सुधारों हारा फुसलाकर ये अपनी

निरंकुशताकों और भी बृढ्ध कर सकते हैं। लेफिन प्रशा और राज्य दोनों इस तरह सही परिणामपर पहुँच सकते थे । प्रजा तो मेरी शराहको गहराईकों पहचानती और शक्ति और बूढ़ संकल्पसे रचनात्मक कार्य हारा अपनी

शकित और क्षमताको बढ़ाती । और राजा लोग सत्याग्रए्‌ बच्द होनेसे उत्पन्न अवसरका लाभ उठाकर, न्यायकी खातिर न्याय करते, अपनी प्रजाके बुंद्धिलान फिन्तु अग्रगासी लोगोंको कुछ घारतबिक शुधार वेकर संतुष्ठ फरते । लेकिन यह तभी हो सकता था, जब कि ने

समयकी भामनाकी पहुंचानते । आज भी भजाफे लिए या राजाओंफे छिए बहुत बेर नहीं हुई । ये अब भी उस सलाईकों समझ सकते है । घूस सिलसिलेशें भुझे सर्वीध्च सत्ताकों भूलता नहीं चाहिए । इस प्रकारके लक्षण भुझे प्रतीत ही रहे हैंकि संबंध्धचि सत्ता राज़ाओंकी दी गयी अपनी इस पिछली घोषणापर

पछता रही है कि प्रजा जो सुधार चाहता है, उन्हें वेनेकी राजाओंकों पुरी आजादी है। इस तरहकी फानाफूसी जोरोंसे होती हुई मालूम दे रही है कि घोषणाकों अक्षरदाः पालन करना लाजिमी नहीं है। यह रहुश्य सभी जानते हैं कि राजाओंमें ऐसा कोई भी क्राप्त

करनेका सहास नहीं हूँ जिससे उसके द्यालमें सर्वोक्त सत्ता नाराज़ हो सकती है। थे ऐसे लोगींसे बात भी नहीं फरना चाहुँगे, जिनसे कि उनकी आातलोत सर्वोच्च सत्ता ने पसंद करतो ही । जब राणाओंपर इतना भारी प्रभाव जाला जाता है, यह स्वाभानिक हूँ

कि भहुतती रियासतो्म शासकॉकी भीषण पिरंकुशताके लिए सर्वोच्च सत्ताकों भीजिम्मेदार माना जाग |इसलिए कमी इस अभागें देवामें हिला फूठ पड़ी तो;उसकी जिम्सेवारी सभीपर

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