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पृष्ठ:आँधी.djvu/११२

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नीरा


अमरनाथ क्रोध से बुढ्ढे को देख रहा था कि तु देवनिवास उस मलिनो नीरा की उ कराठा और खे भरी मुखाकृति का अध्ययन कर रहा था।

आप को क्रोध आ गया क्या महाशय । आने की बात ही है । ले लीजिए अपनी अठन्नी । अठन्नी देकर ईश्वर में विश्वास नहीं कराया जाता । उस चोट के बारे म पुलिस से जाकर न कहने के लिए भी अठन्नी की आवश्यकता नहीं । मैं यह मानता हूँ कि सृष्टि विषमता से भरी है चष्टा करके भी इसम आर्थिक या शारीरिक साम्य नहीं लाया जा सकता। हा तो भी ऐश्वर्यबालों को जिन पर भगवान् की पूर्ण कृपा है अपनी सहृदयता से ईश्वर का विश्वास कराने का प्रयन करना चाहिए । कहिए इस तरह भगवान् की समस्या सुलझाने के लिए आप प्रस्तुत हैं।

इस बूढे नास्तिक और तार्किक से अमरनाथ को तीव्र विरक्ति हो चली थी। अब वह चलने के लिए देवनिवास से कहने वाला था कितु उसने देखा यह तो झोपड़ी म आसन जमा कर बैठ गया है।

अमरनाथ को चुप देखकर देवनिवास ने बूढे से कहा- अच्छा तो आप मेरे घर चल कर रहिए। संभव है कि मैं आपकी सेवा कर सक। तब आप विश्वासी बन जायँ तो कोई आश्चर्य नहीं।

इस बार तो वह बुढ्ढा बुरी तरह देवनिवास को घूरने लगा। निवास वह तीव्र दृष्टि सह न सका । उसने समझा कि मैंने चलने के लिए कह कर बूढे को चोट पहुँचाई है । वह बोल उठा-क्या आप । ठहरो भाई ! तुम बड़े जदबाज मालूम होते हो-बूढे ने कहा- क्या सचमुच तुम मेरी सेवा किया चाहते हो या ?

अब बूढा नीरा की ओर देख रहा था और नीरा की आँखें बूढे को आगे न बोलने की शपथ दिला रही थीं कि तु उसने फिर कहा ही या नीरा को जिसे तुम बड़ी देर से देख रहे हो अपने घर लिया जाने की बड़ी उकण्ठा है ! क्षमा करना ! मैं अविश्वासी हो गया हूँ न ! क्या