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पृष्ठ:आँधी.djvu/४९

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आँधी
 

कोठरी जिसका मैं दो रुपये किराया देता हूँ उसम क्या मुझे अपना कुछ रखने के लिए नहीं है ?

ओहो । रामजी तुम हो भाई मैं भूल गया था । तो चलो श्राज ही उसे उठा लाता हूँ। कहते हुए शराबी ने सोचा--अच्छी रती उसी को बेचकर कुछ दिनों तक काम चलेगा।

गोमती नहा कर रामजी पास ही अपने घर पर पहुचा । शराबी की कल देते हुए उसने कहा-ले जाश्रो किसी तरह मेरा इस से पिण्ड छूटे।

बहुत दिनों पर श्राज उसको कल ढोना पड़ा। किसी तरह अपनी कोठरी म पहुँच कर उसने देखा कि बालक चुपचाप बैठा है । बड़बड़ाते हुए उसने पूछा- क्यों र तू ने कुछ खा लिया कि नहीं?

भर पेट खा चुका हूँ और वह देखो तुम्हार लिए भी रख दिया है। कह कर उसने अपनी स्वाभाविक मधुर हँसी से उस रूखी कोठरी को तर कर दिया । शराबी एक क्षण भर चुप रहा । फिर चुपचाप जल पान करने लगा। मन ही मन सोच रहा था- यह भाग्य का संकेत नही तो और क्या है ? चल फिर सान देने का काम चलता करू । दोनों का पेट भरेगा। वही पुराना चरखा फिर सिर पड़ा। नहीं तो दो बातें किस्सा कहानी इधर उधर की कहकर अपना काम चला ही लेता था। पर अब तो बिना कुछ किये घर नहीं चलने का । जल पीकर बोला- क्यों र मधुआ अब तू कहाँ जायगा ?

कहीं नहीं।

यह लो तो फिर क्या यहा जमा गड़ी है कि मैं खोद खोद कर तुझे मिठाई खिलाता रहूँगा।

तब कोई काम करना चाहिए ।

करेगा।