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पृष्ठ:आँधी.djvu/५०

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मधुआ
 


जो कहो।

अच्छा तो आज से मेरे साथ साथ घूमना पड़गा । य कल तेरे लिए लाया हूँ | चल आज स तुझे सान देना सिखाऊगा। कहा रहूँगा इसका कुछ ठीक न ।। पेड़ के नीचे रात बिता सकेगा न |

कहीं भी रह सकूँगा पर उस ठाकुर की नौकरी न कर सकेंगा । -शराबी ने एक बार स्थिर दृष्टि से उसे देखा । बालक की आंखें दृढ निश्चय की सौगध खा रही थीं।

शराबी ने मन ही मन कहा-बैठे बैठाये यह इत्या कहा से लगी। अब तो शराब न पीने की मुझ भी सौगध लेनी पड़ी। वह साथ ले जानेवाली वस्तुओं को वटोरने लगा। एक गर का और दूसरा कल का दो बोझ हुए।

शराबी ने पूछा- किसे उठाएगा ?

जिसे कहो।

अच्छा तेरा बाप जो मुझको पकड़े तो?

कोई नहीं पकड़ेगा चलो भी । मेरे पाप कमी मर गये ।

शराबी आश्चय से उसका मुँह देखता हुआ कल उठा कर खड़ा हो गया। बालक ने गठरी लादी। दोनों कोठरी छोड़ कर चल पड़े।