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पृष्ठ:आलमगीर.djvu/९४

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देगमप्रेसवारी रसी पारी में प्रायम और फपर मना पारयो पी। साप्रप भोर परियों ने मसनद, चाँदनी चौर गाव सकिए लगा दिए। बेगम मन पर गई । छ देर प्रापम परमे पर बगम ने एमा पापक म दिया-'पारितू गण को मारी गरे उसे समो बिमारे यहाँ मुप्रेम गने र अपने पहरे पोबी रखे और अमीर नापतौ उपके पारी हिस्से में अपने सिगरिमा परिव गानादी मम दोनो उमगलों चे पमा दिया गया। दोनों दोनों ने अदम्प निगाहों से एक तो देखा । वलवार को मूठ पर दोनों का दाम गगा। और वय मर गानो एक मरे को स्नी नबरी से देखने लगे। नवागत सौ पारित भर वलबार मान से तीच मी और गुरसे मरी प्रावाब मे रोरा गुरबा-"दरा की कसम, मैं पागम नही पर्वाश्व र सम्मावि फिर मुसलमान के बराबर रवा दिया था। मैं चाहता कि इसी बत दोडो करप गोरव सोविता।" “पारवा दो में भी पहीली बळ माग सर मुझे सा। मगर बेवर महीलिपी भाप बाब शाहमादा नापत अलीसान बादुर, पुरचाप अपनी नौकरी ठसे ठरे बबा साएं मा का शाबादी का दुरुम मा है, और पाया मी पाप के पदी दरारे और मलम वो नरम दोनों ने अपने अपने परे पूर्ण करने की बात माय नमो ने इस बार नही दिया। मा गुस्से सेवा प्रा पता गा । पररवास सनियर अपने पोरे परमेर पा ।