सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आलम केलि - चन्द की उज्यारी व्रजऊजर करति जुरि, • दीपक उज्यारी हू ते जरि,जरि जाति है। तरुन वियोग तरुनी को तन तायये को, जैसे दिन तरनि तरैया तैसी राति है ॥२२३१ तुम बिनु कान्ह ब्रज नारि मार मारी सु तो, विरह विथा अपार छाती क्यों सिराती है। तरनि सो तमीपति' ताहीसा तलपातवै, हेरति ज्यों निसा परी दसौ दिसा ताती है। कानन में जायः नेकु अानन उघारि देत, ताकी झार फूली डार दुरि तेसुरवाती है। वारि में जो वोखो तनु लागति ज्यों चुरै मीन, . पारिज फीवेले ते विलोके वरी जाती है ॥२२४३ 'जसोदा विरह दान की दहेडो मिस फान्हर की वेर जानि, देवकी के द्वार है के फेहूँ विधि दीजिये। . तजि सबै नात मात तात की ग. यात पहे. . श्रीचा धाक्ष्य पाहाय को विधि नीजिये। -तमीपनि = द्रमा । २... सेन । ३--भोगापार गा । - - - - - - - - - - - - - - -